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Showing posts from August, 2018

बौद्ध ग्रंथ लिंक

ऋषि दयानंद के सभी ग्रन्थ pdf में इस लिंक में उपलब्ध हैं अत्यधिक शेयर करें इस पोस्ट को http://www.vedicgranth.org/home/the-great-authors/maharshi सभी पुस्तकों की भाषा हिंदी है इसमें ऋषि के सारे वेद भाष्य , सत्यार्थ प्रकाश ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका संस्कारविधि आर्याभिविनय आर्योद्देश्य रत्नमाला समस्त शास्त्रार्थ --- काशी जबलपुर चांदपुर आदि अष्टाध्यायी भाष्य निघंटु आदि आज तक की सभी ऋषि दयानंद की पुस्तकें हैं *वेदार्थ कल्पद्रुम* *स्वामी करपात्री महाराज के वेदार्थ पारिजात को आर्य विद्वानोंद्वारा प्रत्युत्तर* https://drive.google.com/file/d/0B-96r6k2BtjkQXdmZlVkeWFxQ00/view?usp=docslist_api https://drive.google.com/file/d/0B-96r6k2BtjkVXFrSnNVT1ZRX28/view?usp=docslist_api https://drive.google.com/file/d/0B-96r6k2BtjkYUx3YVhaaTdscU94MElwWlFmakNxb0pXcWQw/view?usp=docslist_api https://drive.google.com/file/d/0B-96r6k2BtjkQ0tfZmVKb3RXbFk/view?usp=docslist_api https://drive.google.com/file/d/0B-96r6k2BtjkekNYQUV2cmp6dmJIZG5Ic2RMaXdHNkM2NzFZ/view?usp=docslist_api बौधसंग्रह व वैदिक *विनय पिटक

बंग्ला

प्रश्नवाचक सर्वनाम और भी हैं,फिलहाल दूसरे सर्वनाम (पुरुषवाचक सबन्धवाचक इत्यादि)देखते हैं मैं _आमि_ আমি हम _आम्रा_ আমরা हम दोनों- _अम्रा दुजौन_ আমরা দুজন वह _शे, ओ_ সে , ও वे(सम्माननीय) _तीनि, उनि_ তিনি , উনি यह सम्माननीय क्या है नीचे बता रहा हूँ। वे _तारा ताँरा ओरा_ তারা তাঁরা ওরা तुम _तुई_ তুই तुमलोग _तोरा_ তোরা आप _तुमि_ তুমি आप(सम्मानीय) _आप्नि_ আপনি मुझे _आमाए आमाके_ আমায় আমাকে मेरा _आमार_ আমার तुम्हें _तोके_ তোকে तुम लोगों को _तोदिके_ তোদিকে तुम्हारा _तोर्_ তোর तुम लोगों को _तोदेर_ তোদের आपको _तोमाके_ তোমাকে आपका _तोमार_ তোমার आपको (सम्मा०) _आप्नाके_ আপনাকে आपका (सम्मा०) _आपनार_ আপনার उसको _ताँके_ তাকে उसका _ताँर_ তাঁর उन लोगों को _तादिके_ তাদিকে उन लोगों का _तादेर्_ তাদের उनको(सम्मा०) _ओनाके_ ওনাকে उनका(सम्मा०) _ओनार्_ ওনার

मैक्समूलर

📙🔥 *मैक्समूलर द्वारा वेदभाष्य भ्रष्ट करने के प्रमाण* मैक्समूलर अपनी बहुअर्थी लेखनी को आड़ में आजीवन भारतवासियों को छलता रहा। आजकल वेदों पर आरोप कर स्वयं को आधुनिक बुद्धिजीवी सिद्ध करने का एक दौर चल पड़ा है। ऐसे में मुल्ले, ईसाई मिशनरियां, भीमटे, वामपंथी सभी एक स्वर से मैक्समूलर के द्वारा किये वेदभाष्य के भ्रष्ट अर्थों को दिखाकर वैदिक सभ्यता पर चौतरफा आक्रमण करने से नहीं थकते। यह पुस्तक उन सभी के गाल पर एक तमाचा है, जो मैक्समूलर के द्वारा किये भ्रष्ट अर्थों के द्वारा वैदिक सभ्यता पर वमन करते हैं और भारतीयों के मन मे वेदों के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न कर उन्हें आपस मे ही आर्य-मूलनिवासी कहकर भिड़ाते हैं। उन मूर्खों को जानकर आश्चर्य होगा कि मैक्समूलर की मृत्यु के उपरांत उसकी पत्नी द्वारा उसके जीवन भर के पत्रों को संकलित करके प्रकाशित कराया, जिसमें मैक्समूलर ने स्वयं  बड़े ही स्पष्ट शब्दों में अपने करतूतों को स्वीकार किया है। उसका एक उदाहरण देखिए 👇👇 “I hope I shall finish that work, and I feel convinced, though I shall not live to see it, that this edition of mine and the translation of