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मैक्समूलर

📙🔥 *मैक्समूलर द्वारा वेदभाष्य भ्रष्ट करने के प्रमाण*

मैक्समूलर अपनी बहुअर्थी लेखनी को आड़ में आजीवन भारतवासियों को छलता रहा।

आजकल वेदों पर आरोप कर स्वयं को आधुनिक बुद्धिजीवी सिद्ध करने का एक दौर चल पड़ा है। ऐसे में मुल्ले, ईसाई मिशनरियां, भीमटे, वामपंथी सभी एक स्वर से मैक्समूलर के द्वारा किये वेदभाष्य के भ्रष्ट अर्थों को दिखाकर वैदिक सभ्यता पर चौतरफा आक्रमण करने से नहीं थकते।

यह पुस्तक उन सभी के गाल पर एक तमाचा है, जो मैक्समूलर के द्वारा किये भ्रष्ट अर्थों के द्वारा वैदिक सभ्यता पर वमन करते हैं और भारतीयों के मन मे वेदों के प्रति अश्रद्धा उत्पन्न कर उन्हें आपस मे ही आर्य-मूलनिवासी कहकर भिड़ाते हैं।

उन मूर्खों को जानकर आश्चर्य होगा कि मैक्समूलर की मृत्यु के उपरांत उसकी पत्नी द्वारा उसके जीवन भर के पत्रों को संकलित करके प्रकाशित कराया, जिसमें मैक्समूलर ने स्वयं  बड़े ही स्पष्ट शब्दों में अपने करतूतों को स्वीकार किया है।
उसका एक उदाहरण देखिए
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“I hope I shall finish that work, and I feel convinced, though I shall not live to see it, that this edition of mine and the translation of the Veda will hereafter tell to a great extent on the fate of India, and on the growth of millions of souls in that country.  It is the root of their religion, and to show them what that root is, I feel sure, is the only way of uprooting all that has sprung up from it during the last three thousand years.”  

(Vol, 1, p. 328).

*अर्थात्‌ ”मुझे आशा है कि मैं इस काम को (सम्पादन-भाष्य आदि) पूरा कर दूंगा और मुझे निश्चय है कि यद्यपि मैं उसे देखने के लिए जीवित न रहूँगा तो भी मेरा ऋग्वेद का यह संस्करण और वेद का अनुवाद भारत के भाग्य और लाखों भारतीयों की आत्माओं के विकास पर प्रभाव डालने वाला होगा। यह (वेद) उनके धर्म का मूल है और मूल को उन्हें दिखा देना जो कुछ उससे पिछले तीन हजार वर्षों में निकला है, उसको मूल सहित उखाड़ फैंकने का सबसे उत्तम तरीका है।”*

यह स्वीकारोक्ति स्वयं मैक्समूलर की है, अब आप स्वयं समझ सकते हैं कि किस प्रकार समस्त भारतवासियों को छला गया है, और अंग्रेजों के काल में जबरदस्ती उनको वेदों से दूर करने के प्रयास किये गए, जो ज्ञान के अभाव में और मूर्खों-स्वार्थियों की अज्ञानता-वश आज भी अनवरत जारी है।

आवश्यकता है , इस भयानक सत्य को जन-जन तक पहुंचाया जाय, जिससे अधिकाधिक संख्या में भारतवंशी अपने मूल (वेदों) से जुड़ सकें।🙏

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*The Life and Letters of the Right Honourable Friedrich Max Müller*
*Vol- I*
https://archive.org/details/lifeandlettersr00mlgoog

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एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक्रिरे। एधाञ्चकृषे , एधाञ्चक्राथे , एधाञ्चकृढ्वे। एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्रवहे , एधाञ्चक्रमहे।  3. *लुट् लकार* एधिता , एधितारौ , एधितारः।  एधितासे , एधिताथे , एधिताध्वे।  एधिताहे , एधितास्वहे , एधितास्महे।  4. *लृट् लकार* एधिष्यते , एधिष्येते , एधिष्यन्ते। एधिष्यसे , एधिष्येथे , एधिष्यध्वे। एधिष्ये , एधिष्यवहे , एधिष्यमहे। 5. *लेट् लकार* एधिषातै , एधिषैते , एधिषैन्ते। एधिषासै ,  एधिषैथे , एधिषाध्वै।  एधिषै , एधिषावहै , एधिषामहै।  6. *लोट् लकार* एधताम्  ,एधेताम् , एधन्ताम्।  एधस्व , एधेथाम् , एधध्वम्। एधै , एधावहै , एधामहै। 7. *लङ् लकार* ऐधित , ऐधेताम् , ऐधन्त। ऐधथाः , ऐधेथाम् , ऐधध्वम्। ऐधे , ऐधावहि , ऐधामहि। 8. *लिङ् लकार*        *क. विधिलिङ् :-* एधेत , एधेताम् , एधेरन्। एधेथाः , एधेयाथाम् , एधेध्वम्। एधेय , एधेवहि , एधेमहि।           *ख. आशीष् :-* एधिषीष्ट , एधिषीयास्ताम

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् ,       वहि ,      महिङ्। सूत्र:- *तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्ताताम्झथासाथाम्ध्वमिडवहिमहिङ्।* अष्टाध्यायी 3.4.78

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