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Showing posts from April, 2018

भूमिका

भूमिका :- *ओ३म्* *सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम्।* *देवा भागं यथा पूर्वे सं जनाना उपासते।* :- ऋग्वेद १०.१९१.२ *अर्थात्:-* हे मनुष्यों! साथ साथ मिल जाओ। मिलकर परस्पर संवाद करो। हमारे मन एक हो जायें। इसलिये कि एक मन हुये पूर्व के विद्वान जैसे लाभ का सेवन करते थे वैसे तुम भी कर सको।🔥 हम सभी भारतीय युवा व जिज्ञासु जन यह जानते हैं कि आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में आदरणीय बाबा साहेब डा. भीमराव रामजी अंबेडकर की जयन्ती प्रतिवर्ष हर्ष और उल्लास के साथ सर्वसमाज द्वारा उल्लास के साथ मनायी जाती है। प्रतिवर्ष जयन्ती में दलितों के बाबा साहब द्वारा की उन २२ प्रतिज्ञाओं का अवश्य स्मरण करवाया जाता है जो उन्होने तथाकथित हिन्दू धर्म का परित्याग करते समय लीँ थी। वैसे तो इनमें अधिकाँश प्रतिज्ञाएँ सत्य न्याय व वेदानुकूल ही हैं परन्तु कुछ घोँचुओं पोपो और धूर्त पाखण्डियों द्वारा यह दुष्प्रचार किया जाता है कि दलितों को तथाकथित हिन्दू धर्म त्यागकर इस्लाम और ईसाई बन जाना चाहिये।जबकि इस्लाम और ईसाईयत स्वयं ही पाखंड के मूल हैं क्योंकि इनकी पुस्तकों में अनेकों सृष्टि नियम के प्रतिकूल कथन व अनेकों परस्पर

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बाबा साहेब कि प्रथम प्रतिज्ञा की समालोचना  ओ३म्        :- प्रथमेश आर्य्य।    जय भीम नमो बुद्धाय।  नमस्ते मित्रों ! डा. भीमराव राम जी अंबेडकर का इस राष्ट्र के हित में बहुत योगदान है विशेषरूप के संवैधानिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में।  उन्होने विकृत हो चुके हिन्दू धर्म पर बहुत कुछ लिखा।  पर किसी के लिखने के वही बात पर प्रामाणिक नहीं हो जाती जब तक कि उन बातों या तथ्यों  के प्रमाण उस धर्म के प्रामाणित व सर्वोच्च  ग्रंथों में न मिलें। आज षड्यंत्रकारी लोग बाबा साहब की २२ प्रतिज्ञाओं को पत्थर की लकीर सदृश दिखाकर बिना चिन्तन मनन के  इस्लाम व ईसाईयत में धर्मान्तरण करवा रहे हैं। अतः आज के परिप्रेक्ष्य में तर्क व युक्ति के साथ उन प्रतिज्ञाओं का समालोचना अनिवार्य है जिससे भोले लोग मार्गदर्शन पा सकें। इति।  १.प्रथम प्रतिज्ञा:- मैं ब्रह्मा, विष्णु,महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही उनको पूजूंगा समालोचना:- स ब्रह्मा विष्णुः सः रुद्रस्स शिवस्सोsक्षरस्स परमः स्वराट्। सः इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।        - कैवल्योपनिषत् खंड १. मन्त्र ८। अर्थ :-  सब जगत् को बनाने से ब्रह्मा सर्व

अष्टादश

* बाबा साहेब की अष्टादश प्रतिज्ञा की समालोचना * * ओ३म् *     :- प्रथमेश आर्य्य।  १८.:- मैं महान अष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूंगा।एवं सहानुभूति व प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूंगा। * समालोचना:- * आप यदि बुद्ध को अष्टांगिक मार्ग अनुसरण करना चाहते हैं तो अवश्य करिये। परन्तु जीवन में आध्यात्मिक व मानसिक उत्थान के लिये महर्षि पतंजलि व वेदव्यास जी ने पहले ही विधान कर रखा है।  * अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहाः यमाः *     - योगदर्शन २.३० * शौचसन्तोषतपःस्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि नियमाः * - योगदर्शन २.३२ ऐर ये ग्रंथ (वैदिक धर्म) तथाकथित हिन्दू   के ही प्रामाणिक ग्रंथ हैं और इनमें विधिवत् इनका उपदेश है फिर आपने योगदर्शन की ये बातें क्यों न अपनायीं ? इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो आपने जाना न होगा या जानकर भी अनजान बने रहे होंगे। हाँ कुरान बाईबल में ये नियम आपको कभी न मिलेंगे। क्योंकि जो धर्म काल्पनिक जन्नत व जहन्नुम पर आधारित हों उनमे ऐसा तर्कसंगत वर्णन संभव नहीं। वहाँ तो जन्नत में विविध प्रकार की शराबों और हूरों का वर्णन हैं वहाँ ब्रह्मचर्य सध भी न

लोप प्रकरण

*लोपः प्रकरणः*:- *अदर्शनं लोपः* १.१.५९ *प्रत्ययस्य लुक्श्लुलुपः* १.१.६० *प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्* १.१.६१ *न लुमताsङ्गस्य* १.१.६२ अर्थ :- अदर्शन , अनुच्चारण की लोप संज्ञा है। अर्थात जो पहले विद्यमान हो परन्तु बाद में न हो त इसको लोप होना कहते हैं।५९ प्रत्यय के लोप होने की तीन संज्ञा हैं - लुक् , श्लु , लुप्। अर्थात् कहीं पर प्रत्यय का लोप होगा तो वहाँ उसको लुक् कहा जायेगा तो उसकी लुक् संज्ञा होगी।वास्तव में यह लोप् ही है परन्तु इसका विशेष नाम रखा गया होगा। इसी प्रकार श्लु , लुप् को समझें।६०।  प्रत्यय के लोप न होने पर जो कार्य होते हैं वो प्रत्यय का लोप होने पर होंगे।6 ६१। परन्तु लुमता द्वारा लोप कहे जाने पर प्रत्यय लोप होने पर प्रत्ययसंबन्धी कारेय न होंगे। ६२। लुमान् = लु हो जिसमें वह।(लुक् , श्लु , लुप्)  लुमता ३.१ = लु शब्द से।  (लोप कहे जानेपर ) लुक् श्लु लुप्।

बाबा साहेब की १४, १५, १६ , १७ प्रतिज्ञाओं की समालोचना

*बाबा साहेब की चतुर्दश , पञ्चदश ,षोडश व सप्तदश प्रतिज्ञाओं की समालोचना* *ओ३म्* :- *प्रथमेश आर्य्य* *१४.:-* मैं चोरी नहीं करूंगा।  *१५.:-* मैं झूठ नहीं बोलूंगा। *१६.:-* मैं कामुक पापों को नहीं करूंगा।  *१७.:-* मैं शराब , ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूंगा।    *समालोचना:-* आपकी ये प्रतिज्ञाएँ तो अवश्य सराहनीय व सर्वथा वेदानुकूल हैं। अब कुछ कुरान व बाईबल वाले भी कहेंगे कि कुरान व बाईबल के में भी यही प्रतिज्ञाएँ हैं तो उनको मुँहतोड़ उत्तर यह है कि कुरान में पहले शराब का निषेध नहीं था। बाद में निषेध हुआ। और हुक्का तो अल्लाह स्वयं ही फूँकते हैं। झूठ बोलना तो कुरान में जायज ही होगा क्योंकि जो ऐसा न होता तो मोहम्मद साहब स्वयं को कथित अल्लाह का पैगम्बर न कहते। जब कुरान में पहले ही 4-10 पत्नियों को रखने का आदेश दे रखा है और काफिर की पत्नियों व रखैलों को रखने का आदेश व हलाला करने करवाने का आदेश हो तो ऐसे लोगों द्वारा कामुक पाप न करना अर्थात् सतत् वीर्यरक्षा करने की बात कुरान के अनुसार बताना केवल जगहँसाई ही है।  अब वेद से प्रमाण देखिये :- *अथर्ववेद का ग्यारहवाँ कांड का पाँचवा

बाबा साहेब की त्रयोदश प्रतिज्ञा की समालोचना

*बाबा साहेब की त्रयोदश प्रतिज्ञा की समालोचना* *ओ३म्* :- *प्रथमेश आर्य्य* *त्रयोदश प्रतिज्ञा:-* मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूंगा और उनकी रक्षा करूंगा।  *समालोचना:-* अब आप मनुवादी भी हो गये हैं। क्योंकि महर्षि मनु व वेदव्यास जी ने भी प्राणियों पर दया करते हुये अहिंसा के मार्ग को बताया है और *योऽहिंसकानि भूतानि हिनस्त्यात्मसुखेच्छया ।स जीवांश्च मृतश्चैव न क्व चित्सुखं एधते ।। मनुस्मृति 5/45* जो जीव वध योग्य नहीं है उनको जो कोई अपने सुख के निमित्त मारता है वह जीवित दशा में भी मृतक तुल्य है वह कहीं भी सुख नहीं पाता है। *यो बन्धनवधक्लेशान्प्राणिनां न चिकीर्षति ।स सर्वस्य हितप्रेप्सुः सुखं अत्यन्तं अश्नुते ।। मनुस्मृति 5/46* जो मनुष्य किसी जीव को बन्धन में रखने (पकड़ने), वध करने व क्लेश देने की इच्छा नहीं रखता है वह सबका देवेच्छु है अतएव वह अनन्त सुख भोगता है। अतः आपकी यह प्रतिज्ञा भी पूर्ण वेदानुकूल है। परन्तु कुरान व बाईबल के सर्वथा प्रतिकूल हैं। और आपकी प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह है *हम आपके परमभक्त मुस्लिम व ईसाई यह संकल्प लेते हैं कि आज से ही