*लोपः प्रकरणः*:-
*अदर्शनं लोपः* १.१.५९
*प्रत्ययस्य लुक्श्लुलुपः* १.१.६०
*प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्* १.१.६१
*न लुमताsङ्गस्य* १.१.६२
अर्थ :- अदर्शन , अनुच्चारण की लोप संज्ञा है। अर्थात जो पहले विद्यमान हो परन्तु बाद में न हो त इसको लोप होना कहते हैं।५९
प्रत्यय के लोप होने की तीन संज्ञा हैं - लुक् , श्लु , लुप्। अर्थात् कहीं पर प्रत्यय का लोप होगा तो वहाँ उसको लुक् कहा जायेगा तो उसकी लुक् संज्ञा होगी।वास्तव में यह लोप् ही है परन्तु इसका विशेष नाम रखा गया होगा। इसी प्रकार श्लु , लुप् को समझें।६०।
प्रत्यय के लोप न होने पर जो कार्य होते हैं वो प्रत्यय का लोप होने पर होंगे।6
६१।
परन्तु लुमता द्वारा लोप कहे जाने पर प्रत्यय लोप होने पर प्रत्ययसंबन्धी कारेय न होंगे। ६२।
लुमान् = लु हो जिसमें वह।(लुक् , श्लु , लुप्)
लुमता ३.१ = लु शब्द से। (लोप कहे जानेपर ) लुक् श्लु लुप्।
🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते। एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...
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