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Showing posts from July, 2018

सोम का यौगिक व योगरूढ़ अर्थ

*सोमः का अर्थ शराब नहीं*                         :- प्रथमेश आर्य्य। *अर्त्तिस्तुसुहुसृधृक्षिक्षुभायावापदियक्षिनीभ्यो मन्।* उणादिकोष १.१४०। 🔥 *सु + मन् = सोमः* *सवत्यैश्वर्यहेतुर्भवतीति सोमः कर्पूरश्चन्द्रमा वा* । अर्थात् :- सोम = जो ऐश्वर्य का हेतु (कारण) हो , कर्पूर ,चन्द्रमा।  अब देखिये यदि सोम का अर्थ शराब होता तो अवश्य ही मद्य लिखा होता जबकि ऐसा कुछ भी नहीं।  बल्कि ऐश्वर्य का कारण सोम बताया गया है।

विपस्सी बुद्धो की जाति क्षत्रिय

🔥 *विपस्सी बुद्धों की जाति क्षत्रिय अर्थात् ठाकुर*       :- *प्रथमेश आर्य्य* नमस्ते मित्रों ! अभी तक आपने महर्षि मनु जी को ही क्षत्रिय वर्ण का सुना होगा। परन्तु आज आपको दिखाता हूँ कि बुद्ध अपने आपको किस जाति व गोत्र का बताते हैं।   तो एक कथा है *बौद्ध धम्म के प्रामाणिक ग्रंथ सुत्तपिटक* के महापदानसुत्त में , जो अक्षरशः(संक्षिप्त)  निम्न प्रकार है :-  एक समय भगवान् श्रावस्ती के अनाथपिंडक आरामजेतवन की करेरी कुटी में निवास कर रहे थे। वहाँ कुटी में पूर्वजन्म की चर्चा चल रही थी। (तभी महात्मा बुद्ध जी से अपने पूर्वजन्म की प्रशंसा दूसरे को बताना रहा नहीं गया और चले आये और बोले :-😃):- *भिक्षुओं! पूर्वजन्म संबंधी धार्मिक कथा को क्या तुम सुनना चाहते हो ?* भिक्षु बोले :- भगवान् उसी का काल है! भगवान् ने कहा :- भिक्षुओं आज से इकानबे कल्प पहले विपस्सी भगवान् अर्हत और सम्यक् संबुद्ध  संसार में पैदा हुये थे। *भिक्षुओं! भगवान् क्षत्रिय जाति के थे और क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुये थे।* (पुनः कहा):- *मैं अर्हत् सम्यक् सम्बुद्ध क्षत्रिय जाति का , क्षत्रिय कुल में उत्पन्न हुआ* *दीघ निकाय* *

राजयक्ष्मा के पूर्वरूप व लक्षण

*टी. बी. होने के पहले के लक्षण :-* जिस व्यक्ति को टी. बी. हुआ नहीं है किन्तु जल्द ही (4-6 महीने या साल भर में ) होने वाला है उसके शरीर में निम्न लक्षण प्रकट होते हैं। इन्हे पूर्वरूप कहते हैं।  *शोष के पूर्वरूप:-* १. जुकाम (प्रतिश्याय)  २. छीँक आना। ३. बार बार कफ का गिरना। ४. मुख में मिठास। ५. भोजन की अनिच्छा। ६. खाना खाते समय थकावट का अनुभव होना। ७. बर्तन , पानी , अन्न, दाल, चटनी शाक आदि निर्दोष या अल्प दोष वाली वस्तुओं में भी दोष देखना अर्थात् बुरा या नुक्सानदेह मानना। ८. भोजन करते समय जी मचलना। ९. मुँह में पानी बहुत आना। १०. खाये हुये अन्न की उल्टी होना। ११. मुख और पाँव का सूखना। १२. हाथों को बहुत अधिक देखते रहना। १३. आखों का सफेद होना (रक्क की कमी ) १४. भुजाओं में मोटाई जाँचनें की प्रवृत्ति।  १५. अपने शरीर से घृणा या अपने शरीर में भयंकर रूप देखना। १६. स्वप्न में पानी से रहित स्थानों में पानी देखना , शून्य स्थानों में ग्राम जंगल व जनपदो ती प्रतीति होना, जंगलो का जलना , शुष्क होना या टूटना देखना , गिरगिट मोर बन्दर तोतासाँप कौआ उल्लू आदि के साथ स्पर्श की प्रतीति , कुत

टी. बी . राजयक्ष्मा शोष का कारण

🔥 * टी. बी. या tuberclosis (क्षय रोग या राजयक्ष्मा और शोष ) का कारण * * इह खलु चत्वारि शोषस्य आयतनानि।  तद्यथा साहसं सन्धारणं क्षयो विषमाशन। * टी. बी.के चार कारण हैं :- १. * साहस:- * अपनी ताकत या बल से अधिक कार्य करना , अपने से अधिक बलवान से कुश्ती लड़ना , बहुत अधिक बोलना , बहुत अधिक बोझ उठाना , अधिक ऊँचे नीते रास्ते में चलना। इससे छाती फट जाती है। २. * संधारण:- * मल मूत्र लगने पर इनका समाधान न करना अर्थात् मल मूत्र आने पर मलत्याग न करना। ३. * क्षय:- *   अत्यधिक चिन्ता शोक करने व रूखा सूखा खाने व दुर्बल होने पर भी उपयुक्त भोजन न करना।  इससे हृदय में स्थित ओज का क्षय होता है और मनुष्य सूखने लगता है। और निरन्तर ऐसा रहने पर टी. बी. हो जाता है। व बहुत अधिक वीर्य या शुक्र के क्षय से शरीर में दुर्बलता आने पर शरीर में शुष्कता व इससे टी. बी. हो जाता है। ४. * विषमाशन :- *   अपने पाचन शक्ति व मौसम आदि के अनुकूल भोजन न करना। इससे शरीर में दोष बढ़कर शरीर को अधिक सुखा देते हैं। जैसे सूखे व्यक्ति को यदि अपच रहे को वह और भी सूख जायेगा फलतः राजयक्ष्मा होने की संभावना बढ़ जायेगी। * चरकसंहिता

टी. बी . राजयक्ष्मा शोष का कारण

🔥 * टी. बी. या tuberclosis (क्षय रोग या राजयक्ष्मा और शोष ) का कारण * * इह खलु चत्वारि शोषस्य आयतनानि।  तद्यथा साहसं सन्धारणं क्षयो विषमाशन। * टी. बी.के चार कारण हैं :- १. * साहस:- * अपनी ताकत या बल से अधिक कार्य करना , अपने से अधिक बलवान से कुश्ती लड़ना , बहुत अधिक बोलना , बहुत अधिक बोझ उठाना , अधिक ऊँचे नीते रास्ते में चलना। इससे छाती फट जाती है। २. * संधारण:- * मल मूत्र लगने पर इनका समाधान न करना अर्थात् मल मूत्र आने पर मलत्याग न करना। ३. * क्षय:- *   अत्यधिक चिन्ता शोक करने व रूखा सूखा खाने व दुर्बल होने पर भी उपयुक्त भोजन न करना।  इससे हृदय में स्थित ओज का क्षय होता है और मनुष्य सूखने लगता है। और निरन्तर ऐसा रहने पर टी. बी. हो जाता है। व बहुत अधिक वीर्य या शुक्र के क्षय से शरीर में दुर्बलता आने पर शरीर में शुष्कता व इससे टी. बी. हो जाता है। ४. * विषमाशन :- *   अपने पाचन शक्ति व मौसम आदि के अनुकूल भोजन न करना। इससे शरीर में दोष बढ़कर शरीर को अधिक सुखा देते हैं। जैसे सूखे व्यक्ति को यदि अपच रहे को वह और भी सूख जायेगा फलतः राजयक्ष्मा होने की संभावना बढ़ जायेगी। * चरकसंहिता

आयुर्वेद का मूल वेद ही हैं

🔥 *वेद से ही आयुर्वेद निकला है।* अर्थात् आयुर्वेद वेद को अपना मूल मानता है। *तत्र चेत्प्रष्टारः स्युः - चतुर्णामृक्सामयजुरथर्ववेदानां कं वेदमुपदिश्यन्त्यायुर्वेदविदः , किमायुः, कस्मादायुर्वेदः किं चायमायुर्वेदः शाश्वतोsशाश्वतश्च। कति कानि चास्याङ्गानि।१८*    ५ जुलाई २०१८ *तत्र भिषजा पृष्टेनैव चतुर्णामृक्सामयजुरथर्ववेदानामात्मनोsथर्ववेदे भक्तिरादेश्या। वेदो ह्याथर्वणः स्वस्त्ययन बलि मङ्गल होम नियम प्रायश्चित्तोपवास मन्त्रादि परिग्रहाच्चिकित्सां प्राह, चिकित्सा चायुषो हितायोपदिश्यते।१९* *वेदं चोपदिश्याssयुर्वाच्यं।२०* *##### *चरकसंहिता सूत्रस्थान 30वाँ अध्याय* यदि कोई पूछे कि ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद और अथर्ववेद में इन चारों वेदों में से किस वेद को आयुर्वेद कहते हैं।आयुर्वेद का कौन से वेद के साथ सम्बन्ध है ?आयुर्वेद क्या है?  आयुर्वेद किसलिये है ? यह आयुर्वेद नित्य है या अनित्य?  वैद्य द्वारा इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाने पर उसे ऋग्वेद सामवेद यजुर्वेद अथर्ववेद इन चारों में से *अथर्ववेद में ही अपनी श्रद्धा बतलानी चाहिये।* क्योंकि अथर्ववेद में स्वस्ति -अयन बलि मंगल होम नियम प्रायश्चि