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राजयक्ष्मा के पूर्वरूप व लक्षण

*टी. बी. होने के पहले के लक्षण :-*
जिस व्यक्ति को टी. बी. हुआ नहीं है किन्तु जल्द ही (4-6 महीने या साल भर में ) होने वाला है उसके शरीर में निम्न लक्षण प्रकट होते हैं। इन्हे पूर्वरूप कहते हैं। 
*शोष के पूर्वरूप:-*
१. जुकाम (प्रतिश्याय) 
२. छीँक आना।
३. बार बार कफ का गिरना।
४. मुख में मिठास।
५. भोजन की अनिच्छा।
६. खाना खाते समय थकावट का अनुभव होना।
७. बर्तन , पानी , अन्न, दाल, चटनी शाक आदि निर्दोष या अल्प दोष वाली वस्तुओं में भी दोष देखना अर्थात् बुरा या नुक्सानदेह मानना।
८. भोजन करते समय जी मचलना।
९. मुँह में पानी बहुत आना।
१०. खाये हुये अन्न की उल्टी होना।
११. मुख और पाँव का सूखना।
१२. हाथों को बहुत अधिक देखते रहना।
१३. आखों का सफेद होना (रक्क की कमी )
१४. भुजाओं में मोटाई जाँचनें की प्रवृत्ति। 
१५. अपने शरीर से घृणा या अपने शरीर में भयंकर रूप देखना।
१६. स्वप्न में पानी से रहित स्थानों में पानी देखना , शून्य स्थानों में ग्राम जंगल व जनपदो ती प्रतीति होना, जंगलो का जलना , शुष्क होना या टूटना देखना , गिरगिट मोर बन्दर तोतासाँप कौआ उल्लू आदि के साथ स्पर्श की प्रतीति , कुत्ता , ऊँट , गधा , सुअर आदि पर चढ़कर सवारी करना, केऋ अस्थि , भस्म , भूसा अंगारे के ढेरों पर चढ़ना आदि देखना। 
१७. मांस खाने की तीव्र इच्छा व स्त्रियों के साथ रमण की प्रबल इच्छा।
१८ . निद्रा। 
*शोष के लक्षण:-*
जब शरीर टी. बी. रोग से ग्रस्त हो जाता है को निम्न लक्षण प्रकट होते हैं :-
१. शिर की कफ से भरना।
२. कास। 
३. श्वास।
४. स्वरभेद (आवाज में बदलाव)
५. कफ गिरना।
६. थूक नें रक्त आना।
७. पार्श्वों में दर्द (अगल बगल दर्द होना )
८. कंधो का नीचे दबना।
९. ज्वर।
१०. अतिसार (डायरिया )
११. अरोचक (खाना खाने का मन न होना )
*चरकसंहिता व सुश्रुत संहिता से उद्धृत*
*ओ३म्*
*प्रथमेश आर्य्य*

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