अब (चेता स्तोता ) इन प्रयोगों में *(स्थाने अन्तरतम्)* इस सूत्र से प्रमाणकृत आन्तर्य(समानता) मानें तो ह्रस्व इकार उकार के स्थान में अकार गुण प्राप्त है इससे अभीष्ट प्रयोगों की सिद्धि नहीं होती। इसलिये यह परिभाषा है :- 13. *यत्रानेकविधमान्तर्यं तत्र स्थानकृत एवान्तर्यं बलीयः। अष्टाध्यायी 1.1.50* *महाभाष्यस्थ* जहाँ अनेक प्रकार का अर्थात् स्थानकृत, अर्थकृत, गुणकृत और प्रमाणकृत यह चार प्रकार का आन्तर्य प्राप्त हो वहाँ जो स्थान से आन्तर्य है वही बलवान् होता है इस ये प्रमाणकृत आन्तर्य्य के हट जाने से स्थानकृत आन्तर्य्य के आश्रय से एकार ओकार गुण होकर (चेता स्तोता) प्रयोग बन जाते हैं स्थानकृत आदि के विशेष उदाहरण सन्धि विषय में लिख चुके हैं। 13। :- *साभार स्वामी दयानन्दकंत परिभाषिक*