🔥 *ईश्वर का वेदोक्त स्वरूप*
*स पर्यागच्छुक्रमकायमव्रणमस्नाविरँ् शुद्धमपापविद्धम्।*
*कविर्मनीषी परिभूः स्वम्भूर्याथातथ्यतोsर्थान् व्यदधाच्छाश्वतीभ्यः समाभ्यः।*
यजुर्वेद 40.8। 🔥 इस मन्त्र का देवता:- आत्मा है।देवता = प्रतिपाद्य विषय।
*आर्यभाषा पदार्थ:-* हे मनुष्योः! जो ब्रह्म (शुक्रम्) शीघ्रकारी सर्वशक्तिमान (अकायम्) स्थूल-सूक्ष्म और कारण शरीर रहित (अव्रणम्) छिद्ररहित और नहीं छेद करने योग्य (अस्नाविरम्) नाड़ी आदि के साथ सम्बन्धरूप बन्धन से रहित (शुद्धम्) अविद्यादि दोषों से रहित होने सदा पवित्र और (अपापविद्धम्) जो पापयुक्त , पापकारी और पाप में प्रीति करने वाला कभी नहीं होता *(परि, अगात्)* सब ओर से व्याप्त जो *(कविः)* सर्वज्ञ *(मनीषी)* सब जीवों की मनोंवृत्तियों को जानने वाला *(परिभूः)* दुष्ट पापियों का तिरस्कार करने वाला और *(स्वयम्भूः)*अनादि स्वरूप जिसकी 🔥 *संयोग से उत्पत्ति , वियोग से विनाश, माता , पिता , गर्भवास, जन्म, वृद्धि और मरण नहीं होते* वह परमात्मा (शाश्वतीभ्यः) सनातन अनादिस्वरूप अपने स्वरूप उत्पत्ति और विनाशरहित (समाभ्यः) प्रजाओं के लिये (याथातथ्यतः) यथार्थभाव से (अर्थान्) वेद द्वारा सब पदार्थों को (व्यदधात्) विशेषकर बनाता है , (सः) वही परमेश्वर तुम लोगों को उपासना करने योग्य है।
*पदार्थ:-* हे मनुष्याः! यद्यनन्तशक्तिमदजं निरन्तरं सदा मुक्तं न्यायकारि निर्मलं सर्वज्ञं साक्षि-नियन्तृ-अनादिस्वरूपं ब्रह्मं कल्पादौ जीवेभ्यः स्वोक्तैर्वेदैः शब्दार्थसम्बन्धविज्ञापिकां विद्यां नोपदिशेत् तर्हि कोsपि विद्वान्न भवेत् , न च धर्मार्थकाममोक्षफलं प्राप्तुं शक्नुयात् , तस्मादिदमेव सदैवोपाध्वम्।
🔥 दीर्घतमा ऋषि। आत्मा देवता। स्वराड्जगती छन्दः।निषादः स्वरः।
🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते। एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...
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