Skip to main content

अष्टाध्यायी 3.1.2

🔥 *परश्च।3.1.2*
प वि:- परः 1.1। च।
अनुवृत्ति: - प्रत्ययः।
अर्थ: - यः च प्रत्ययसंज्ञकः, सः धातोः प्रातिपदिकाद् वा परो भवति, इत्यधिकारोsयम् , आ पञ्चमाध्यायपरिसमाप्तेः।
आर्यभाषा: -( च) और जिसकी की प्रत्यय संज्ञा है वह धातु अथवा प्रातिपदिक से परे होता है , इसका भी पञ्चम अध्याय की समाप्ति तक अधिकार है।
उदाहरण: - तव्यत् , तव्य। *(पठितव्य)*  यहाँ तव्यत् तव्य आदि परे होते हैं पूर्व नहीं, इस सूत्र के कारण। तव्यत आदयः प्रत्ययाः पराः भवन्ति न पूर्वाः।

Comments

Popular posts from this blog

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् , ...

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...