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बाबा साहेब की १४, १५, १६ , १७ प्रतिज्ञाओं की समालोचना

*बाबा साहेब की चतुर्दश , पञ्चदश ,षोडश व सप्तदश प्रतिज्ञाओं की समालोचना*
*ओ३म्*
:- *प्रथमेश आर्य्य*
*१४.:-* मैं चोरी नहीं करूंगा। 
*१५.:-* मैं झूठ नहीं बोलूंगा।
*१६.:-* मैं कामुक पापों को नहीं करूंगा। 
*१७.:-* मैं शराब , ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूंगा।   
*समालोचना:-* आपकी ये प्रतिज्ञाएँ तो अवश्य सराहनीय व सर्वथा वेदानुकूल हैं। अब कुछ कुरान व बाईबल वाले भी कहेंगे कि कुरान व बाईबल के में भी यही प्रतिज्ञाएँ हैं तो उनको मुँहतोड़ उत्तर यह है कि कुरान में पहले शराब का निषेध नहीं था। बाद में निषेध हुआ। और हुक्का तो अल्लाह स्वयं ही फूँकते हैं।
झूठ बोलना तो कुरान में जायज ही होगा क्योंकि जो ऐसा न होता तो मोहम्मद साहब स्वयं को कथित अल्लाह का पैगम्बर न कहते। जब कुरान में पहले ही 4-10 पत्नियों को रखने का आदेश दे रखा है और काफिर की पत्नियों व रखैलों को रखने का आदेश व हलाला करने करवाने का आदेश हो तो ऐसे लोगों द्वारा कामुक पाप न करना अर्थात् सतत् वीर्यरक्षा करने की बात कुरान के अनुसार बताना केवल जगहँसाई ही है। 
अब वेद से प्रमाण देखिये :-
*अथर्ववेद का ग्यारहवाँ कांड का पाँचवाँ सूक्त तो ब्रह्मचर्य्य के लिये ही समर्पित है।*
ब्रह्मचार्येति समिधा समिद्धः
कार्ष्णं वसानो दीक्षितो दीर्घश्मश्रुः।
स सद्य एति पूर्वस्मादुत्तरं
समुद्रं लोकान्त्संगृभ्य मुहुराचरिक्रत्॥4॥

ब्रह्मचारी जनयन् ब्रह्मापो
लोकं प्रजापतिं परमेष्ठिनं विराजम्।

गर्भो भूत्वामृतस्य योनाविन्द्रो
ह भूत्वाऽसुरांस्ततर्ह॥5॥

ब्रह्मचर्येण तपसा राजा राष्ट्रं वि रक्षति।
आचार्यो ब्रह्मचर्य्येण ब्रह्मचारिणमिच्छते॥6॥*
      - *अथर्ववेद ११.५.१७-१९*
(ब्रह्मचार्येति॰) जो ब्रह्मचारी होता है, वही ज्ञान से प्रकाशित तप और बड़े बड़े केश श्मश्रुओं से युक्त दीक्षा को प्राप्त होके विद्या को प्राप्त होता है। तथा जो कि शीघ्र ही विद्या को ग्रहण करके पूर्व समुद्र जो ब्रह्मचर्याश्रम का अनुष्ठान है, उसके पार उतर के उत्तर समुद्रस्वरूप गृहाश्रम को प्राप्त होता है और अच्छी प्रकार विद्या का संग्रह करके विचारपूर्वक अपने उपदेश का सौभाग्य बढ़ाता है॥4॥

(ब्रह्मचारी ज॰) वह ब्रह्मचारी वेदविद्या को यथार्थ जान के प्राणविद्या, लोकविद्या तथा प्रजापति परमेश्वर जो कि सब से बड़ा और सब का प्रकाशक है, उस का जानना, इन विद्याओं में गर्भरूप और इन्द्र अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त हो के असुर अर्थात् मूर्खों की अविद्या का छेदन कर देता है॥5॥

(ब्रह्मचर्येण त॰) पूर्ण ब्रह्मचर्य से विद्या पढ़ के और सत्यधर्म के अनुष्ठान से राजा राज्य करने को और आचार्य विद्या पढ़ाने को समर्थ होता है। आचार्य उस को कहते हैं कि जो असत्याचार को छुड़ा के सत्याचार का और अनर्थों को छुड़ा के अर्थों का ग्रहण कराके ज्ञान को बढ़ा देता है॥6॥
*ह्रत्सु पीतासो युध्यन्ते दुर्मदासो न सुरायाम्।*
         - ऋग्वेद ८.२.१२। 
शराब पीने वाले परस्पर लड़ते हैं। *यथा मांसं यथा सुरा यथाक्षा अधिदेवने।....*
           :- अथर्ववेद ६.७१.१।
निश्चय ही मांस , शराब का सेवन करने वाले का ओजतेज सब कुछ समाप्त हो जाता है अतः इन सब व्यसनो  से बचता हुआ हे योगिन् ! तू अपने मन संकल्प व इच्छा को परमेश्वर में स्थिर कर।
*सुरापानं स्तेयं महापातकानि.....*
:- मनुस्मृति ११.५४। 
शराब इत्यादि मद्यपान, चोरी करना ये महापाप हैं।
*ओ३म्*
*वेदों की ओर लौटो*
*ओ३म् भूर्भवः स्वः।तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।*

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