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1-10

बाबा साहेब कि प्रथम प्रतिज्ञा की समालोचना 
ओ३म्
       :- प्रथमेश आर्य्य। 
  जय भीम नमो बुद्धाय। 
नमस्ते मित्रों ! डा. भीमराव राम जी अंबेडकर का इस राष्ट्र के हित में बहुत योगदान है विशेषरूप के संवैधानिक अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में।  उन्होने विकृत हो चुके हिन्दू धर्म पर बहुत कुछ लिखा।  पर किसी के लिखने के वही बात पर प्रामाणिक नहीं हो जाती जब तक कि उन बातों या तथ्यों  के प्रमाण उस धर्म के प्रामाणित व सर्वोच्च  ग्रंथों में न मिलें।
आज षड्यंत्रकारी लोग बाबा साहब की २२ प्रतिज्ञाओं को पत्थर की लकीर सदृश दिखाकर बिना चिन्तन मनन के  इस्लाम व ईसाईयत में धर्मान्तरण करवा रहे हैं। अतः आज के परिप्रेक्ष्य में तर्क व युक्ति के साथ उन प्रतिज्ञाओं का समालोचना अनिवार्य है जिससे भोले लोग मार्गदर्शन पा सकें।
इति। 
१.प्रथम प्रतिज्ञा:-
मैं ब्रह्मा, विष्णु,महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही उनको पूजूंगा

समालोचना:-
स ब्रह्मा विष्णुः सः रुद्रस्स शिवस्सोsक्षरस्स परमः स्वराट्।
सः इन्द्रस्स कालाग्निस्स चन्द्रमाः।
       - कैवल्योपनिषत् खंड १. मन्त्र ८।
अर्थ :-  सब जगत् को बनाने से ब्रह्मा सर्वत्र व्यापक होने से विष्णु इत्यादि परमेश्वर के नाम हैं। 
बृह बृहि वृद्धौ इन धातुओं से ब्रह्मा शब्द सिद्ध होता है। योsखिलो जगन्निर्माणेन बर्हति वर्द्धयति स ब्रह्मा।
जो सम्पूर्ण जगत् को रच के बढ़ाता है इसलिये परमेश्वर का नाम ब्रह्मा है।
विष्लृ व्याप्तौ इस धातु से नु प्रत्यय होकर विष्णु शब्द सिद्ध होता है। वेवेष्टि व्याप्नोति चराsचर जगत् स विष्णुः परमात्मा । चर और अचररूप जगत् में व्यापक होने से परमात्मा का नाम विष्णु है। 
इसी प्रकार महेश = शिव = यो शं करोति सः शङ्करः जो सबका का मंगल व कल्याण करने वाला है उस परमेश्वर का नाम शिव है।
      - सत्यार्थ प्रकाश प्रथम समुल्लास।
इस प्रकार ये आपने देखा कि वेद में आये ब्रह्मा, विष्णु,महेश,शिव, सविता ,मनु इत्यादि सब शब्द धातुओं से निष्पन्न होने के कारण और उपासना प्रकरण होने पर परमात्मा के वाचक है या उसके ही नाम हैं।  अतः
१. बाबा साहेब द्वारा उक्त प्रकार की प्रतिज्ञा करना उनके संस्कृत अज्ञान को दर्शाती है। परन्तु कुछ घोँचू प्रकृति के लोग फिर भी बाबा साहेब को बहुत बड़ा संस्कृत का विद्वान बताते हैं। यद्यपि कानून के विषय मेरे लिये भी में वो आप्तपुरुष ही हैं।वो कानून के महाज्ञाता थे इसमें कोई संदेह नहीं।जैसे स्वामी दयानंद सरस्वती को अरबी भाषा का बिल्कुल भी ज्ञान न था। परन्तु वेद के विषय में उनका ज्ञान अथाह था।
२. ब्रह्मा विष्णु इत्यादि विविध शरीरधारी व मुकुटधारी देवों के नाम भागवतादि 18 पुराणों में हैं जो स्वयं वेदविरुद्ध हैं। अतः बाबा साहेब को वेद और पुराणों में अन्तर न ज्ञात था।
३. बाबा साहेब द्वारा ली गयी प्रतिज्ञा केवल हिन्दू धर्म के लिये थी।परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि वो इस्लाम व ईसाईयत आदि पाखंडी धर्मों के समर्थक हैं। बल्कि ऐसा मानने पर दो यह ही होगा कि आसमान से गिरे और खजूर पर अटके। अर्थात् बाबा साहेब की प्रतिज्ञा का यह भी अर्थ है कि किसी भी दलित को ईसा मसीह और मोहम्मद को भी ईश्वर व पैगम्बर न मानना चाहिये।अन्ततः यह भी तो पाखंड है कि हम इस्लाम व ईसाईयत के काल्पनिक या मृत व्यक्तियों को ईश्वर या ईश्वरपुत्र मानकर पूजें।
४. जब ब्रह्मा विष्णु आदि ईश्वर के ही  नाम हैं तब इस प्रतिज्ञा में पुनरुक्ति दोष आ गया। और
ईश्वर की सिद्धि तर्क व युक्तियों से होती है।और ब्रह्मा विष्णु आदि को पूजने का अर्थ बाबा साहेब के अनुसार क्या है ? यह भी घोँचुओं(वामन जिग्नेश  जैसे अधकचरे ज्ञानियों को)  को खुलासा करना चाहिये।
यदि पूजा करना का अर्थ फल मेवा दूध आदि चढ़ाना व घंटा आदि बजाना है तो इन पाखंडो का वर्णन वेद व किसी ऋषिमुनिकृत ग्रंथ में नहीं।ईश्वर की  पूजा का अर्थ है निरन्तर ओ३म् का जप करते हुये सत्कर्मों को करते हुये चरित्र को सुधारना व निरन्तर ब्रह्मचर्य पालन करते हुये व जीवन में पुरुषार्थ करते हुये समाधि का अभ्यास करना।
५. इस प्रतिज्ञा से ईसा मसीह व मोहम्मद आदि पैगम्बरों व पीर मजारो को मानने व पूजने का स्वतः ही निषेध हो जाता है क्योंकि ये भी इस्लाम व ईसाईयत के पौराणिक ब्रह्मा विष्णु महेश ही तो हैं। 
६. इस प्रतिज्ञा के फलस्वरूप सभी उन उन मुस्लिमों व ईसाईयों को अपने-अपने पाखंडी दीन व मजहबों का परित्याग कर देना चाहिये, जो जो अपने आप को बाबा साहेब का परम भक्त व अनुयायी बताते हैं।
७. बाबा साहेब की प्रतिज्ञा पूर्ण रूप से वेदानुकूल है।
ओ३म्
वेदों की ओर लौटो। 
ओ३म् भूर्भुवः स्वः।तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।


बाबा साहेब की द्वितीय प्रतिज्ञा की समालोचना
ओ३म्
    - प्रथमेश आर्य्य

नमस्ते मित्रों ! प्रथम प्रतिज्ञा की समालोचना के पश्चात् अब हम द्वितीय प्रतिज्ञा कि समालोचना करेंगे।
२. द्वितीय प्रतिज्ञा:- मैं राम , कृष्ण जो भगवान् के अवतार माने जाते हैं , में कोई आस्था नहीं रखूंगा और ना ही उनकी पूजा करूंगा। 
समालोचना:-
१. श्रीमान पहले तो आपको यह बताना चाहिये कि आपने ये कहाँ पढ़ा कि श्री राम और श्रीकृष्ण ईश्वर के अवतार हैं? तनिक प्रमाण तो देते। क्योंकि बात तो प्रमाणयुक्त मानी जाती है। 
२. और वेद में ईश्वर को अकायम् अस्नाविरम् अपापविद्धम् (यजुर्वेद)  और अज कहा गया है जिसका अर्थ है कि ईश्वर कभी नस नाड़ी के बन्धन से पृथक् है।
और योगदर्शन में भी क्लेशकर्म विपाकाशयैरपरामृष्ट पुरुषः विशेषः ईश्वरः अर्थात् क्लेश और कर्म और फल व फलभोग ये सर्वथा पृथक् चेतन का नाम ईश्वर है। वास्तव में वेदप्रतिपादित ईश्वर का स्वरूप ही सत्य है। यह स्वरूप अवतारवाद या पैगम्बरवाद के सर्वथा प्रतिकूल है।
और वेद में भी ओ३म् क्रतो स्मर यजुर्वेद इत्यादि मन्त्रों में ओ३म् के जप का ही विधान है न कि राम कृष्ण आदि के नामों का। 
अतः श्रीराम व श्रीकृष्ण को ईश्वर न मानना सर्वथा वेदानुकूल है।
३. अब प्रश्न आस्था का।
तो श्रीराम (की पत्नी माता सीता ) और श्रीकृष्ण (की पत्नी माता रुक्मिणी) ब्रह्मचारी और एकपत्नीव्रतधारी थे।और न ही मांसाहारी थे और न ही रावण की तरह उचक्के या हत्यारे या धूर्त थे।
तो ऐसे निर्मल धर्मात्मा वीर ब्रह्मचारी वैदिकधर्मी और राक्षसों का वध करके प्रजा का रक्षण करने वाले हमारे लिये आस्था के पात्र नहीं होंगे तो क्या जिग्नेश ईसा मसीह जैसे लम्पट धूर्त हमारे आस्था के पात्र होंगे? 
आस्था का पात्र कौन ? इस पर आपका मन्तव्य स्पष्ट नहीं। 
४. और रही बात पूजा की तो पूजा का अर्थ यदि मूर्ति पर पुष्प मेवा तेल इत्यादि चढ़ाना है तो उसका वेदों ,दर्शनो व मनुस्मृति में कहीं वर्णन नहीं। 
अतः पूजा न करने की प्रतिज्ञा पूर्ण वेदानुकूल है। 
५. और इस प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह भी है कि किसी भी दलित और बाबा साहेब के परमभक्त मुस्लिमों व ईसाईयों को मुहम्मद और ईसा मसीह को पैगम्बर व ईश्वरपुत्र न मानना चाहिये यदि वे बाबा साहेब के भक्त हों क्योंकि आखिर मुहम्मद और ईसा मसीह भी तो इस्लाम मजहब और ईसाईयत मजहब के राम और कृष्ण सदृश ही तो हैं।परन्तु चरित्र की दृष्टि से तो राम कृष्ण ही महान हैं।इसलिये श्रीराम व श्रीकृष्ण आदि वेदानुकूल आचरण करने हमारे आदर्श सदैव रहेंगे।श्रीराम ने न तो शूद्रवध किया और न ही सीता का त्याग किया। और श्रीकृष्ण का चरित्र भी महाभारत में पूर्ण आप्तसदृश है।
अतः
यह संकल्प लें कि मुहम्मद साहब व ईसा मसीह को न ही पैगम्बर और ईश्वरपुत्र मानेंगे और न ही उनकी पूजा करेंगे और न ही उनमें कोई आस्था रखेंगे।
ओ३म्
वेदों की ओर लौटो
ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचेदयात्


बाबा साहेब की तृतीय प्रतिज्ञा की समालेचना
ओ३म्
द्वितीय के पश्चात् तृतीय प्रतिज्ञा की समालोचना करते हैं।
३.तृतीय प्रतिज्ञा:- मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी देवताओं में आस्था नहीं रखूंगा और ना ही उनकी पूजा करूंगा। 
समालोचना:- श्रीमान पहली प्रतिज्ञा में ही ये नाम जोड़ देते तो पुनः प्रतिज्ञा की आवश्यकता न पड़ती।
उल्लेखनीय है  कि गौरी गणपति इत्यादि देवी देवता पुराणों में वर्णित हैं। 
वेदादि सच्छास्त्रों में नहीं।
बस एक ही जिज्ञासा है कि क्या आप बौद्ध धर्म के ब्रह्मा विष्णु महेश इत्यादि काल्पनिक देवी देवताओं को मानते हैं? यदि कहों हाँ तो फिर प्रतिज्ञाओं का क्या औचित्य? यदि कहो नहीं तो फिर केवल हिन्दू धर्म का ही कियें नाम लिया? शायद पक्षपात होगा। 
आपकी प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य यह है कि
हम सभी दलित व बाबा साहेब के परमभक्त मुस्लिम और ईसाई यह संकल्प करते हैं कि इस्लाम व ईसाईयत के किसी भी देवी देवता व पैगम्बर खुदा यहोवा पीर शहीद इत्यादि में कोई आस्था नहीं रखूंगा और न ही उनको कभी भी पूजूंगा।
आपको जानना चाहिये कि देवी देवता शब्द का अर्थ क्या होता है?
देवो दानाद्वा दीपनाद्वा द्योतनाद्वा द्युस्थानीय भवतीति - निरुक्त अर्थात् दान करने व प्रकाशन करने से देव संज्ञा होती है। इस प्रकार से ३३ कोटि देव होते हैं जो शतपथ ब्राह्मण ग्रंथ नें लिखे हैं।परन्तु आप की प्रतिज्ञा में तो उन ३३ कोटि देवताओं का कोई वर्णन ही नहीं जिससे यह स्पष्ट है कि आपको वैदिक धर्म का निर्भ्रान्त ज्ञान न था।  यदि ज्ञान होता तो ये प्रारंभ की तीन प्रतिज्ञायें करने की आवश्यकता ही न पड़ती।  आपने तो बहुत सी वेदानुकूल प्रतिज्ञायें कर डाली हैं। 
अतः इन तीन प्रतिज्ञाओं से आपका वेदसंबन्धी ज्ञान अति निम्न है ऐसा मैंने जाना।
ओ३म्
वेदों की ओर लौटो
ओ३म् भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्

बाबा साहेब की चतुर्थ व पञ्चम प्रतिज्ञाओं की समालोचना
ओ३म्
  
चतुर्थ प्रतिज्ञा:- मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ।
पञ्चम प्रतिज्ञा:- मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे। मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार व प्रसार मानता हूँ। 

समालोचना: - श्रीमान ! आपकी प्रतिज्ञाओं मे पुनरुक्ति दोष आ रहा है।  विद्वान् व्यक्ति की रचना में पुनरुक्ति दोष उचित नहीं।  या तो आप पहले ही अवतारवाद न मानते तो राम कृष्ण को अवतार न मानने की आवश्यकता अलग से न पड़ती। 
पर आपके जीवनकाल में जो अवैदिक सामाजिक परिस्थितियाँ रही उनमें भी आपने बहुत सी वेदानुकूल प्रतिज्ञायें कर डाली , जो आपकी अनुसंधानात्मक बुद्धि को द्योतित करता है।
अवतारवाद में विश्वास न करना ही वेदसम्मत है अतः चौथी प्रतिज्ञा पूर्ण वेदानुकूल है।
और भगवान् बुद्ध को अवतार न मानना भी पूर्ण वेदानुकूल है। अतः पञ्चम प्रतिज्ञा भी वेदानुकूल ही है। 
और ईश्वर अवतार नहीं लेता न ही कोई दूत भेजता है।
अतः जो भगवान् बुद्ध को अवतार के रूप मे प्रचारित करें वो पागल ही हैं।
आपकी प्रतिज्ञा का दूसरा मन्तव्य इस प्रकार है:-
हम सभी दलित व आपके परमभक्त मुस्लिम व ईसाई ईसा मसीह के अवतार में विश्वास नहीं करेंगे। और जो पादरी ईसा मसीह को अवतार प्रचारित करेंगे उनको हम महापागल समझेंगे और मुहम्मद को भी पैगम्बर नहीं मानेंगे और जो मोहम्मद को पैगम्बर के रूप में प्रचारित करेगा उसको हम महापागल व धूर्त पाखंडी समझेंगे।
ओ३म्
वेदों की ओर लौटो
ओ३म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।

बाबा साहेब की षष्ठ प्रतिज्ञा की समालोचना
ओ३म्
आपकी पाँच प्रतिज्ञाओं में तो बहुत सी वेदानुकूल हो गयीं परन्तु सब की सब कुरान बाईबल विरुद्ध हैं।  अब छठवीं प्रतिज्ञा की समालोचना करते हैं। 
षष्ठ प्रतिज्ञा:- मैं श्राद्ध में भाग नहीं लूंगा और न ही पिंड दान करूंगा। 
तो श्रीमान ! आपको बता हूँ कि आपकी ते प्रतिज्ञा भी वेदानुकूल ही है।  अब श्राद्ध का अर्थ जानिये:-
तृतीयः पितृयज्ञः -

तस्य द्वौ भेदौ स्तः - एकस्तर्पणाख्यो , द्वितीयः श्राद्धाख्यश्च। तत्र येन कर्मणा विदुषो देवान् , ऋषीन् , पितॄंश्च सुखयन्ति तत्तर्पणम्। तथा यत्तेषां श्रद्धया सेवनं क्रियते तच्छ्राद्धं वेदितव्यम्। तत्र विद्वत्सु विद्यमानेष्वेतत्कर्म सङ्घट्यते , नैव मृतकेषु। कुतः ? तेषां प्राप्त्यभावेन सेवनाशक्यत्वात्। तदर्थकृतकर्मणः प्राप्त्यभाव इति व्यर्थतापत्तेश्च।  तस्माद्विद्यमानाभिप्रायेणैतत्कर्मो- पदिश्यते। सेव्यसेवकसन्निकर्षात् सर्वमेतत्कर्तुं शक्यत इति। तत्र सत्कर्त्तव्यास्त्रयः सन्ति - देवाः , ऋषयः पितरश्च। तत्र देवेषु प्रमाणम् -

पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः।

पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा॥1॥

-यजुर्वेज अ॰ 19। मं॰39॥

द्वयं वा इदं न तृतीयमस्ति। सत्यं चैवानृतं च , सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्या , इदमहमन

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