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अष्टाध्यायी 1.2.11

🔥 *लिङ्सिचावात्मनेपदेषु।1.2.11*
🔥 प वि:- लिङ्-सिचौ 2.1। आत्मनेपदेषु 7.1।
🔥 अनुवृत्ति:- इकः हलन्ताच्च झल् कित्।
🔥 अर्थ: - इकः समीपाद् यो हल् तस्माद् परो झलादी लिङ्-सिचौ प्रत्ययौ आत्मनेपदेषु कित्-वत् भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - इक के समीपवर्ती हल से परे लिङ्-सिच् प्रत्यय आत्मनेपदविषय में किद्-वद् होते हैं।
🔥  उदाहरण:- भित्सीष्ट।  भिद् +लिङ्।
भिद् +सीयुट्+त।  भित्सीयु+सुट्+त।
भित्सी +ष्+ट।
भित्सीष्ट। 
यहाँ भी भिद् के इकार को गुण नहीं हुआ कित् होने से।

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