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अष्टाध्यायी 1.2.12

🔥 *उश्च। 1.2.12*
🔥 प वि:- उः 5.1। च। 
🔥 अनुवृत्ति: - 'लिङ्सिचावात्मनेपदेषु झल् कित्। 
🔥 अर्थ: - ऋकारान्ताद् धातोः परो झलादी लिङ्सिचावात्मनेपदेषु प्रत्ययौ किद्-वद् भवति। 
🔥 उदाहरण: - कृसीष्ट। 
कृ+लिङ्। कृ+सीयुट्+सुट्+त। कृ+सी+ष्+ट।
कृसीष्ट। यहाँ भी कृ को  *सार्वधातुकार्धातुकयोः* से प्राप्त गुण का निषेध होता है।

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