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अष्टाध्यायी 1.2.20

🔥 *मृषस्तितिक्षायाम्। 1.2.20*
🔥 प वि:- मृषः 5.1। तितिक्षायाम् 7.1।
🔥 अनुवृत्ति: - न सेट् निष्ठा कित्।
🔥 अर्थ: - तितिक्षार्थे वर्तमानाद् मृषो धातोः परः सेट् निष्ठाप्रत्ययः किद्वद् न भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - मृष् धातु से परे इट् आगम वाला निष्ठा प्रत्यय किद्वद् नहीं होता।
🔥 उदाहरण: - मर्षितः , मर्षितवान्। 
मृष् +क्त। मृष्+इट्+त।  मर्षितः

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