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अष्टाध्यायी 1.2.34

🔥 *यज्ञकर्मण्यजपन्यूङ्खसामसु।1.2.34*
🔥 प वि:- यज्ञकर्मणि 7.1। अजप-न्यूङ्ख-सामसु 7.3। 
🔥 अनुवृत्ति: - एकश्रुति। 
🔥 अर्थ: - यज्ञस्य कर्मेति यज्ञकर्म, तस्मिन्- यज्ञकर्मणि। जपश्च न्यूङ्खश्च साम च तानि- जपन्यूङ्खसामानीति, अजपन्यूङ्खसामानि, तेषु-अजपन्यूङ्खसामसु। यज्ञकर्मणि , उदात्तानुदात्तस्वरितानामेकश्रुतिस्वरो भवति, जपन्यूङ्खसामानि वर्जयित्वा। 
🔥 आर्यभाषा: - यज्ञकर्म में उदात्त अनुदात्त व स्वरित का एकश्रुति स्वर होता है, जप न्यूङ्ख और सामवेद को छोड़कर।

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