🔥 *सार्वधातुकमपित्। 1.2.4*
🔥 प वि:- सार्वधातुकम् 1.1। अपित्। 1.1। (प इत् यस्य सः पित्)
🔥 अर्थ: - पित्- भिन्नः सार्वधातुकप्रत्ययो ङिद्-वद् भवति।
🔥 आर्यभाषा: - पित् से भिन्न सार्वधातुकप्रत्यय ङित्-वत् होते हैं।
🔥 उदाहरण: - कृ+लट्। कृ +तस्। क् उ र् + उ +त।
कुरुतः।
यहाँ प्रत्यय के ङित् होने से कृ को गुण का निषेध होता है। परंतु पुनः *अत उत् सार्वधातुके* से उत् आदेश तथा यह आदेश अण्(उ) होने से *उरण रपरः* होता है।
🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...
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