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अष्टाध्यायी 1.2.5

🔥 *असंयोगाल्लिट् कित्। 1.2.5*
🔥 प वि:- असंयोगात् 5.1। लिट् 1.1। कित् 1.1।
🔥 न संयोगः इति असंयोगः। तस्मात् -असंयोगात्।(नञ् तत्पुरुष)
🔥 अनुवृत्ति:- अपित्। 
🔥 अर्थ: - असंयोगान्ताद् धातोः परः पिद्-भिन्नो लिट् प्रत्यय कित्-वद् भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - संयोग जिसके अन्त में न हो ऐसी धातु से परे पित् से भिन्न लिट् प्रत्यय कित्-वत् होते हैं। 
🔥 उदाहरण: - यज् +लिट्।  यज् +तस्।  यज्+तस्। यज्+शप् +अतुस्। इ अ ज् +शप्+अतुस्। इज्+इज्+अ+अतुः। इ+ इजतुः।  ईजतुः। 
यहाँ लिट् प्रत्यय के कित् विधान करने से *वचिस्वपियजादीनां किति* से संप्रसारण होता है।  और *संप्रसारणच्च* से पूर्वरूप ई होता है।  द्वित्व के बाद अकः सवर्णे दीर्घः से ईकार होता है।

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