🔥 *रुदविदमुषग्रहिस्वपिप्रच्छ सँश्च।1.2.8*
🔥 अनुवृत्ति: - कित्, क्त्वा।
🔥 अर्थ: - रुद-विद-मुष-ग्रहि-स्वपि-प्रच्छिभ्यो धातुभ्यो परो 'क्त्वा- सन् ' द्वौ प्रत्ययौ किद्-वद् भवति।
🔥 आर्यभाषा: - रुद आदि धातुओ से परे क्त्वा व सन् प्रत्यय किद्-वद् होते हैं।
🔥 उदाहरण: - रुद्+क्त्वा। रुद्+इट्+क्त्वा। रुदित्वा। यहाँ कित् होने से *क्ङिति च* से *पुगन्तलघूपधस्य च* से प्राप्त गुण का निषेध होता है। इसी प्रकार सन प्रत्यय में भी गुण-निषेध होता है।
🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते। एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...
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