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अष्टाध्यायी 1.3.12

🔥 *अनुदात्तङित आत्मनेपदम्।  1.3.12*
🔥 प वि:- अनुदात्तङितः 5.1। आत्मनेपदम् 1.1।
🔥 अर्थ: - अनुदात्तश्च ङश्च तौ-अनुदात्तङौ, इच्च इच्च तौ-इतौ। अनुदात्तङौ इतौ(इत्संज्ञक) यस्य सः-अनुदात्तङित् , तस्मात्-अनुदात्तङितः। अनुदात्तेतो ङितश्च धातोरात्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - अनुदात्त जिसका इत्संज्ञक है, ङ् जिसका इत्संज्ञक है, उस धातु से आत्मनेपद संज्ञक प्रत्यय होते हैं।
🔥  उदाहरण: - *(अनुदात्तेत्)*:- आस्ते। आस्+लट्। आस्+ल्। आस्+त।  आस्+शप्+त। आस्+0+ते। आस्ते। 
यहाँ *'आस् उपवेशने'* धातु पाठ में अनुदात्तेत् पढ़ी गयी है। अतः आत्मनेपद संज्ञक प्रत्यय होंगे।
*(ङित्)* शीङ् स्वप्ने -  *शेते*  ।

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