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अष्टाध्यायी 1.3.18

🔥 *परिव्यवेभ्यः क्रियः।1.3.18*
🔥 प वि:- परि-वि-अवेभ्यः 5।1। क्रियः 5.1।
🔥 अर्थ: - परिश्च विश्च अवश्च ते-परव्यवाः। तेभ्यः-परिव्यवेभ्यः। परि-वि-अव-उपसर्गपूर्वाद् क्री-धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - परि-वि-अव उपसर्गपूर्वक क्री-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - *(परि)* :- परिक्रीणाते। *(वि)*:- विक्रीणाते। *(अव)* :- अवक्रीणाते।

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