🔥 *आङो दोsनास्यविहारणे।1.3.20*
🔥 प वि:- आङः 5.1। दः 5.1। अनास्यविहारणे 7.1।
🔥 अर्थ: - आस्य विहरणं इति आस्यविहरणं। न आस्यविहरणं इति -अनास्यविहरणे। तस्मिन् -अनास्यविहरणे। अनास्यविहरणेsर्थे आङ्-उपसर्गपूर्वाद् दा-धातो कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - मुख-खोलना अर्थ को छोड़कर आङ्-उपसर्गपूर्वक दा-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - विद्याम् *आदत्ते*। विद्या को ग्रहण करता है। आङ् +डुदाञ्+लट्। आ+दा+त। आ+दा+शप्+त। आ+दा+0+त। आ+दा+दा+ते। आ+द+द्+ते। आदत्ते।
यहाँ शप् को श्लु होने पर धातु को द्विर्वचन होता है। *श्लौ* 6.1.10 सूत्र से।
🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...
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