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अष्टाध्यायी 1.3.23

🔥 *प्रकाशनस्थेयाख्ययोश्च।1.3.23*
🔥 प वि:- प्रकाशन-स्थेयाख्ययोः 7.2। च। 
🔥 अनु.:- स्थः। 
🔥 अर्थ: - तिष्ठति अस्मिन् इति स्थेयः। स्थेयस्य आख्या इति -स्थेयाख्या। प्रकाशनं(=स्वाभिप्राय कथनम्) च स्थेयाख्या च ते-प्रकाशनस्थेयाख्ये। तयोः- प्रकाशनस्थेयाख्ययोः। प्रकाशनं(=स्वाभिप्राय कथनम्) स्थेयाख्यायां(=विवादपद निर्णाकस्य कथनम्) चार्थे स्थ-धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - अपने अभिप्राय को प्रकाशित करने व विवादपद के निर्णायक अर्थ में विद्यमान स्थ-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - प्रकाशन: - तिष्ठते कन्या छात्रेभ्यः। कन्या छात्रो के लिये अपना अभिप्राय प्रकाशित करती है।
(स्थेयाख्या) :- स त्वयि तिष्ठते। वह तुझे निर्णायक मानता है।

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