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अष्टाध्यायी 1.3.24

🔥 *उदोsनूर्ध्वकर्मणि।1.3.24*
🔥 प वि:- उदः 5.1। अनूर्ध्वकर्मणि 7.1। 
🔥 अनु. :- स्थः। 
🔥 अर्थ: - ऊर्ध्वस्य कर्म इति ऊर्ध्वकर्म।  न ऊर्ध्वकर्म इति -अनूर्ध्वकर्म।  तस्मिन्- अनूर्ध्वकर्मणि। अनूर्ध्वकर्मण्यर्थे वर्तमानाद् उद्-उपसर्गपूर्वाद् स्थ-धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - उर्ध्व-कर्म को छोड़कर उद्-उपसर्गपूर्वक स्थ-धातु कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - कुटुम्बे उत्तिष्ठते। परिवार की उन्नति के लिये प्रयत्न करता है।

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