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अष्टाध्यायी 1.3.25

🔥 *उपान्मन्त्रकरणे।1.3.25*
🔥 प वि:- उपात् 5.1 मन्त्रकरणे 7.1। 
🔥 अनु.:- स्थः।
🔥 अर्थ: -मन्त्रेण करणम् इति-मन्त्रकरणं। तस्मिन्-मन्त्रकरणे। मन्त्रेणानुष्ठानेsर्थे वर्तमानात् उप-उपसर्गपूर्वाद् स्थ-धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - मन्त्रकरण अर्थ में विद्यमान उप- उपसर्गपूर्व स्थ-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - ऐन्द्र्या गार्हपत्यम् उपतिष्ठते। इन्द्रदेवता वाली ऋचा से गार्हपत्य अग्नि को प्राप्त करता है। 
मंत्रकरण इसलिये कहा जिससे यहाँ आत्मनेपद न हो- भर्तारम् उपतिष्ठति यौवनेन। यौवन से पति को प्राप्त करती है।

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