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अष्टाध्यायी 1.3.26

🔥 *अकर्मकाच्च।1.3.26* 
🔥 प वि:- अकर्मकात् 5.1। च। 
🔥 अनु.:- उपात् , स्थः। 
🔥 अर्थ: - न विद्यते कर्म यस्य सः -अकर्मक। तस्मात्-अकर्मकात्। उप-उपसर्गपूर्वाद् अकर्मकात् स्था-धातो कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - उप-उपसर्गपूर्वक अकर्मक स्था-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - यावद् भुक्तम् उपतिष्ठते देवदत्तः।  देवदत्त प्रत्येक भोजन में उपस्थित होता है।

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