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अष्टाध्यायी 1.3.27

🔥 *उद्विभ्यां तपः।1.3.27*
🔥 प वि:- उद्-विभ्याम् 5.2। तपः 5.2। 
🔥 अनु. :- अकर्मकात्।
🔥 अर्थ: - उत् च विः च तौ-उद्-वी=उद्वी। ताभ्याम्= उद्विभ्याम्।  उद्-वि-उपसर्दपूर्वाद् अकर्मकात् तपो धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - उत्-वि-उपसर्गपूर्वक अकर्मक तप-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - *उत्*:-उत्तपते। *वि*:-  वितपते।

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