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अष्टाध्यायी 1.3.30

🔥 *निसमुपविभ्यो ह्रः।1.3.30*
🔥 प वि:- नि-सम्-उप-वि-भ्यः 5.3।  ह्र 5.1। 
🔥 अर्थ: - नि-सम्-उप-वि-उपसर्गपूर्वाद् ह्रः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - नि-सम्-उप-वि-उपसर्गपूर्वक ह्र धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - *नि*:- निह्रयते।
*सम्*:- संह्रयते। उपह्रयते। विह्रयते। युद्ध के लिये बुलाता है।

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