🔥 *स्पर्धायामाङः।1.3.31*
🔥 प वि:- स्पर्धायाम् 7.1। आङः 5.1।
🔥 अनु.:- ह्रः।
🔥 अर्थ: - आङ-उपसर्गपूर्वाद् स्पर्धायामर्थे वर्तमानाद् ह्रः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - आङ्-उपसर्गपूर्वक स्पर्धा अर्थ में वर्तमान ह्र धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।दूसरे को पराजित करने की इच्छा को स्पर्धा कहते हैं।
🔥 उदाहरण: - मल्लो मल्लं *आह्रयते*। एक पहलवान दूसरे पहलवान को पराजित करने की इच्छा से मल्लयुद्ध के लिये बुलाता है।
🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...
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