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अष्टाध्यायी 1.3.32

🔥 *गन्धनावक्षेपणसेवनसाहसिक्यप्रतियत्नप्रकथनोपयोगेषु कृञः।1.3.32*
🔥 प वि:- गन्धन-अवक्षेपण-सेवन-साहसिक्य-प्रतियत्न-प्रकथन-उपयोगेषु 7.3। कृञः 5.1।
🔥 अर्थ: - गन्धनावक्षेपणसेवनसाहसिक्यप्रतियत्नप्रकथनोपयोगेषु अर्थेषु वर्तमानाद् कृञः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - गन्धन-अवक्षेपण-सेवन-साहसिक्य-प्रतियत्न-प्रकथन और उपयोग अर्थ में विद्यमान कृञ् धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - 1. गन्धनम्- हिंसा :- अपकार से युक्त हिंसात्मक सूचना।  उत्कुरुते। सूचित करता है। 
2. अवक्षेपण:- भर्त्सना = धमकाना। श्येनो वर्तिकाम् उदाकुरुते। बाज बटेर को धमकाता है।
3. सेवन :- सेवा करना। *महामात्रान् उपकुरुते*- महापुरुषों की सेवा करता है।

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