Skip to main content

अष्टाध्यायी 1.3.36

🔥 *सम्माननोत्सञ्जनाचार्यकरणज्ञानभृति-विगणनव्ययेषु नियः।1.3.36*
🔥 प वि:- सम्मानन-त्सञ्जन-आचार्यकरण-ज्ञान-भृति-विगणन-व्ययेषु 7.3। नियः 5.1।
🔥 अर्थ: - सम्माननोत्सञ्जनाचार्यकरणज्ञानभृति-विगणनव्ययेषु अर्थेषु वर्तमानात् नियोः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - सम्मानन, उत्सञ्जन आचार्यकरण, ज्ञान,भृति, विगणन, व्यय अर्थों में वर्तमान नियः धातुः से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - व्यये:- शतं विनयते। धर्मार्थ सौ रूपये देता है।

Comments

Popular posts from this blog

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् , ...

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...