🔥 *कर्तृस्थे चाशरीरे कर्मणि।1.3.37*
🔥 प वि:- कर्तृस्थे 7.1। च। अशरीरे 7.1। कर्मणि 7.1।
🔥 अनु.:- नियः।
🔥 अर्थ: -कर्तरि तिष्ठति इति कर्तृस्थ। तस्मिन् कर्तृस्थे। न शरीरम् इति अशरीरम्। तस्मिन्-अशरीरे। कर्तृस्थे अशरीरे कर्मणि च सति नियो धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - कर्ता से अवस्थित शरीर से भिन्न कर्म होने पर भी नियः धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - क्रोधं विनयते। क्रोध को दूर करता है। *णीञ् प्रापणे* धातु।
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