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अष्टाध्यायी 1.3.39

🔥 *उपपराभ्याम्।1.3.39*
🔥 प वि:- उप-पराभ्याम् 5.2।
🔥 अनु.:- वृत्तिसर्गतायनेषु क्रमः।
🔥 अर्थ: - वृत्तिसर्गतायनेषु अर्थेषु वर्तमानाद् उप-परा-उपसर्गपूर्वाद् क्रमः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - वृत्ति सर्ग और तायन अर्थों में वर्तमान उप-परा -उपसर्ग वाली क्रम् धातु ये कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - *वृत्ति*:- उपक्रमते, पराक्रमते।  रुकता नहीं है। 
*तायने*:- उपक्रमते, पराक्रमते। बढ़ता है

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