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अष्टाध्यायी 1.3.45

🔥 *अपह्नवे ज्ञः।1.3.45*
🔥 प वि:- अपह्नवे 7.1। ज्ञः 5.1।
🔥 अर्थ: - अपह्नवे =अपलापे अर्थे वर्तमानाद् ज्ञा-धातु कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - मिथ्याभाषण अर्थ में विद्यमान ज्ञा धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - शतं अपजानीते। सौ रुपये के लिये मिथ्याभाषण करता है। 
ज्ञा अवबोधने (क्र्या प)

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