🔥 *अकर्मकाच्च।1.3.46*
🔥 प वि:- अकर्मकात् 5.1। च।
🔥 अनु.:- ज्ञः।
🔥 अर्थ: - अकर्मकात् ज्ञा धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति।
🔥 आर्यभाषा: - अकर्मक क्रियावाची ज्ञा धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - सर्पिषः जानीते। घृत के कारण भोजन में प्रवृत्त होता है।
🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...
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