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अष्टाध्यायी 1.3.56

🔥 *उपाद् यमः स्वकरणे।1.3.56*
🔥 प वि:- उपात् 5.1। यमः 5.1। स्वकरणे 7.1।
🔥 अर्थ: - स्वकरणे अर्थे वर्तमानाद् उप-उपसर्गपूर्वाद् यमः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। पाणिग्रहणमिह स्वकरणं गृह्यते न स्वकरणमात्रम्।
🔥 आर्यभाषा: - स्वकरण अर्थ में वर्तमान उप-उपसर्गपूर्वक यम् धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है। यहाँ पाणिग्रहण ही स्वकरण का अर्थ है।
🔥 उदाहरण: - भार्याम् *उपयच्छते* देवदत्तः।  देवदत्त पत्नी को अपनाता है। (विवाह करता है)

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