Skip to main content

अष्टाध्यायी 1.3.58

🔥 *नानोर्ज्ञः।1.3.58*
🔥 प वि:- न।  अनोः 5.1। ज्ञः 5.1।
🔥 अनु.:- सनः।
🔥 अर्थ: - सन्नन्तात् अनु-उपसर्गपूर्वाद् ज्ञः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं न भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - सन्नन्त अनु-उपसर्गपूर्वक ज्ञः धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद नहीं  होता है। 
🔥 उदाहरण: - पुत्रम् *अनुजिज्ञासति*। पुत्र को आज्ञा देना चाहता है।

Comments

Popular posts from this blog

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् , ...

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...