Skip to main content

अष्टाध्यायी 1.3.61

🔥 *पूर्ववत् सनः।1.3.61*
🔥 प वि:- पूर्ववत्।  सनः 5.1।
🔥 अर्थ: - पूर्वेण तुल्यम् इति पूर्ववत्।  सनः पूर्वो यो धातुः आत्मनेपदी भवति, तेन तुल्यं सन्नन्तादपि कर्तरि आत्मनेपदं भवति।येन निमित्तेन पूर्वं धातोः आत्मनेपदं विधीयते तेनैव निमित्तेन सन्नन्तादप्यात्मनेपदं भवति इत्यर्थः। 
🔥 आर्यभाषा: - सन् प्रत्यय ये पूर्व जो धातु आत्मनेपदी है उसके समान सन् प्रत्ययान्त धातु ये कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - आस् :- *आस्ते।* बैठता है।
सन्:- *आसिसिषते।* बैठना चाहता है।

Comments

Popular posts from this blog

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *स...

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् , ...

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक...