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अष्टाध्यायी 1.3.64

🔥 *प्रोपाभ्यां युजेरयज्ञपात्रेषु।1.3.64*
🔥 प वि:- प्र-उपाभ्याम् 5.1। युजेः 5.1। अयज्ञपात्रेषु 7.3।
🔥 अर्थ: - यज्ञस्य पात्राणि इति यज्ञपात्राणि।न यज्ञपात्राणि इति अयज्ञपात्राणि।तेषु- अयज्ञपात्रेषु। अयज्ञपात्रप्रयोगविषये प्र-उप-उपसर्गपूर्वाभ्यां युजेः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - यज्ञपात्रविषय को छोड़कर प्र-उप -उपसर्गपूर्वक युज्-धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - *प्रयुङ्क्ते।*  प्रयोग करता है। *उपयुङ्क्ते।* उपयोग करता है।
प्र+युज् +लट्।
प्र +युज् +त।
प्र+यु श्नम् ज् + त।
प्र+ यु न् ज् +ते। *रुधाधिभ्यः श्नम्* व *टित् आत्मनेपदानां टेरे* से एकार होकर ते होता है।
प्र+ युन् ग् + ते। *चो कुः*
प्र +यु ङ् क् +ते। ( *खरि च* से चर् *ककार* व *अनुस्वारस्य ययि परसवर्ण* से न् को ङ् होता है।)
प्र +युङ्क्ते।
*प्रयुङ्क्ते।*

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