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अष्टाध्यायी 1.3.67

🔥 *णेरणौ यत् कर्म णौ चेद् स कर्ताsनाध्याने।1.3.67*
🔥 प वि:- णेः 5.1। अणौ 7.1। यत् 1.1। कर्म 1.1। णौ 7.1। चेत्। सः 1.1। कर्ता 1.1। अनाध्याने 7.1।
🔥 अर्थ: - न णिः इति अणि।तस्मिन्- अणौ। उत्कण्ठापूर्वकं स्मरणम् इति आध्यानम्। न आध्यानम् इति अनाध्यानम्। तस्मिन्-अनाध्याने। अनाध्याने अर्थे वर्तमानाद् णेः = णिजन्ताद् धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति., अणौ = अण्यन्तावस्थायां यत् कर्म णौ =ण्यन्तावस्थायां चेद्= यदि स कर्ता भवति।
🔥 आर्यभाषा: - उत्कंठापूर्वक स्मरण न करने अर्थ में वर्तमान णिजन्त धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है,  अणिजन्त अवस्था में जो कर्म है , णिजन्त अवस्था में यदि वह कर्ता बन जाता है।
🔥 उदाहरण: - *(अणौ)* *आरोहन्ति* हस्तिनं हस्तिपकाः। पीलवान हाथी पर चढ़ते हैं।
*(णौ)* *आरोहयते* हस्ती स्वयमेव। हाथी पीलवानों को स्वयं चढ़ाता है।
आङ् +रुह् +णिच्
आङ् +रोह् +इ।
आरोहि+लट्।
आरोहि+शप् +त। 
आरोहि+ अ+ ते।
आरोहे+ अ+ ते।
आरोहय् अ ते।
*आरोहयते।*

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