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अष्टाध्यायी 1.3.71

🔥 *मिथ्योपपदात् कृञोsभ्यासे।1.3.71*
🔥 प वि:- मिथ्या-उपपदात् 5.1। कृञः 5.1। अभ्यासे 7.1।
🔥 अनु.:- णेः। 
🔥 अर्थ: - मिथ्या उपपदं यस्य सः मिथ्योपपदः, तस्मात् -मिथ्योपपदात्।अभ्यासे(आवृत्ति, पुनः पुनः करणं) अर्थे वर्तमानाद् मिथ्या-उपपदात् णिजन्ताद् कृञः धातोः कर्तरि आत्मनेपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - बार बार करने अर्थ में विद्यमान मिथ्या-उपपद वाली णिजन्त कृञ् धातु से कर्तृवाच्य में आत्मनेपद होता है।
🔥 उदाहरण: - पदं मिथ्यां *कारयते।* एक पद को अनेक बार अशुद्ध उच्चारण करता है।

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