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अष्टाध्यायी 1.3.82

🔥 *परेर्मृषः।1.3.82*
🔥 प वि: परेः 5.1। मृषः 5.1।
🔥 अर्थ: - परि-उपसर्गपूर्वाद् मृषः धातोः कर्तरि परस्मैपदं भवति। 
🔥 आर्यभाषा: - परि-उपसर्गपूर्वक मृष् धातु से कर्तृवाच्य में परस्मैपद होता है। 
🔥 उदाहरण: - *परिमृष्यति।* सब ओर से सुख दुःख आदि द्वन्द्वों को सहन करता है।

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