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अष्टाध्यायी सूत्रम् 1.1.4

🔥न धातुलोपे आर्धधातुके। 1.1.4
🔥प वि :- न अव्यय। धातुलोपे 7.1। आर्धधातुके 7.1
🔥अनुवृत्ति :- इको गुणवृद्धी। 
अर्थ :- धातुलोपे आर्धधातुके प्रत्यये परत इकः स्थाने गुणवृद्धि न भवतः। 
🔥अर्थ :- (धातुलोपे ) यदि धातु के अवयव का लोप करने वाला आर्धधातुक प्रत्यय परे हो तो इक् के स्थान में गुण और वृद्धि नहीं होती। 
🔥उदाहरण :- मरीमृजः। मरीमृज् +अच्। मरीमृज् +अ। मरीमृज+सु।  यहाँ यहाँ यङन्त मृजुँष् शुद्धौ (अदा प) धातु से पूर्ववत् अच् प्रत्यय है। मृजेर्वृद्धिः ' 7.2.114 से धातुस्थ इक (ऋ)को वृद्धि प्राप्त होती है,  उसका इस सूत्र से प्रतिषेध किया गया है।

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