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अष्टाध्यायी 1.1.3

🔥इको गुणवृद्धी।  1.1.3
🔥अर्थ:- गुणवृद्धिभ्याम् शब्दाभ्याम् यत्र गुणवृद्धि विधीयते तत्र 'इकः' इति षष्ठ्यन्तं पदमुपस्थितं अस्ति। 
🔥आर्यभाषा:- गुणवृद्धी शब्दों के द्वारा जहाँ गुण और वृद्धि का विधान किया जाता है वहाँ ' इकः' यह षष्ठ्यन्त पद उपस्थित होता है। इससे शास्त्र में इक् के स्थान में गुण और वृद्धि होती है। 
🔥उदाहरण :- जेता।  जि+तृच्। जे+सु।  यहाँ जि जये (भ्वादि) धातु से पूर्ववत् तृच् प्रत्यय करने पर 'सार्वधातुकार्धधातुकयो' 7.3.84 से जि धातु के इक् को गुण(ए)  होता है।

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