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*कुरान में पहले शराब हराम नहीं पर बाद में हराम की गयी*
:- प्रथमेश आर्य्य।
शराब के सम्बन्ध में जो आदेश कुरान में है , उनको देखने से आपको यह भलीभाँति विदित हो जायेगा, कि कुरान खुदा का कलैम नहीं। यह तो किसी ऐसे व्यक्ति का कथन है जो वहाँ के निवासियों की इच्छानुसार उनकी हाँ में हाँ मिलाकर उनको अपना साथी मित्र व सहयोगी बनाना चाहता था। 
अरब निवासी मद्यपान के बहुत आदी थे इसलिये उनको अपनी ओर आकर्षित करने के लिये वह यह है कि प्रथम मद्यपान (शराबखोरी) का समर्थन करना प्रारम्भ कर दिया और खुदा के नाम से एक आयत भी प्रस्तुत कर दी गयी।
आयत यह है :-
वा मिनस्समरा तिन्नखीले वल आनाबे तत्तखेजूना ना मिनहो सक रव्वा रिजकन हसना।
:- कुरान पारा 14. रकू 9.15।
अर्थ: - हम पालते हैं हम तुमको फलों से ..... खजूर और अंगूर की चर्चा करता है। तत्तखेजूना मिनहो सकरन सकर से तात्पर्य शराब है। यद्यपि सम्बोधन कुरैश मक्का की ओर है और मक्का में शराब हराम भी नहीं हुयी थी।
तफसीर हक्कानी पारा 14. पृष्ठ 36।
तुम्हारे हेतु है मेवों से खजूरों के और अंगूरों के जो कुछ लेते हो तुम उससे मस्त करने वाली वस्तुयें यह आयत शराब हराम होने के पूर्व उतरी। यहाँ शराब का तात्पर्य जो अंगूर या खजूर से लेते हैं।  (अर्थात शराब निकालते हो)
तफसीर कादरी भाग 1. पृष्ठ 570।
स्मरण रहे कुछ व्याख्याकारों नें कहा है कि सिरका भी अर्थ किया जा सकता है किन्तु हम कहेंगे कि आयत में तो सकर शब्द है जिसका अर्थ है कि मस्त करने वाली या नशा उत्पन्न करने वाली वस्तुये हैं। अतः सिरका अर्थ नहीं हो सकता है।
जब खुदा की ही मुहर इस बात पर लग गयी कि अंगूर और खजूर खानें और शराब निकालने हेतु हैं, तो इस्लाम में निर्भयता पूर्वकनअत्यधिक रूप से शराब का प्रचलित रही और वर्षों तक प्रचलित रही।
तब इसके बाद धीरे धीरे शराब बन्दी की आयते उतरीं।
कुरान पारा 2। रकू 20.11
फिर केवल नमाज के समय नशे पर प्रतिबन्ध लगा।
या अय्यु हल्लजीना आमनू ला तकरबुस्सलाता व अन्तुम सुकारा। 
:- कुरान पारा 5 रकू 7.4।
*इस आयत से नमाज के अवसरो पर नमाज हराम कर दी।*
*तुम नमाज की स्थिति में हो तो नशे के समीप न जाओ।*
:- तफसीर मजहरी पारा 2. पृष्ठ 440।
फिर एक और आयत उतरी जिसमें शराब को पूरी तरह हराम कर दिया।
या अय्यु हल्लजीना आमनू इन्नमल खसरो वल मैसिरो बल अनसावो वल अरहामो रिजसुम्मिन अमलिश्शैताने फज्तूनेबूही ल अल्लकुम तुफलैहूनव। 
:- कुरान पारा 7. रकू 12.2।
अर्थात्:- ऐ ईमान वालो! शराब और जुआ शैतानी काम है इनसे बचो। (वही पृष्ठ। )
सत्यानुगामी मित्रों! आपने उक्त लिखित कथन शराब का सम्पूर्ण ब्रांड पढ लिया है। अब विचार कीजिये कि प्रथम आयत में शराब निकालने व पीने की प्रेरणा है।  द्वितीय आयत में आंशिक अस्वीकृति के साथ लाभप्रद बताया जा रहा तथा तृतीय आयत में मदिरापान की स्वीकृति इस प्रतिबन्ध के साथ दी है कि नशे की स्थिति में नमाज वर्जित है।
नमाज के पूर्व व पश्चात पी लिया करो।और चतुर्थ आयत में कहा गया है कि शराब और जुआ गंदगी व शैतान का कार्य्य है किन्तु अर्श पर विराजे खुदा और उसके पैगम्बर हजरत मुहम्मद दोनों मुसलमान को गन्दगी पीते हुये देखते रहे यहाँ तक कि हजरत मुहम्मद की पैगम्बरी का अन्तिम समय आ गया और अन्तसमय में मुहम्मद को शराब गंदगी दिखाई देने लगी तथा खुदा भी नित्य प्रति मुसलमानों में प्रचलित मदिरापान को देख मौन साधे रहा व पहले शैतानी कार्य्य व पहले शैतानी कार्य्य उसे भी दृष्टिगोचर न हुआ? कितने आश्चर्य्य व विचारपूर्ण बात है।*कुरान की आयतों के समान दूसरी आयत बन गयी*
:- *प्रथमेश आर्य्य।*
कुरान के लेखक और मुसलमानों के इस आग्रह को देखकर हम आश्चर्य्य में हैं कि वह बारंबार दोहराते हैं कि कुरान के समान कोई नहीं बना सकता। 
स्वयं  कुरान में दूसरे लोगों की वाणियाँ हैं आयते हैं उसे मुसलमान दिनरात पढ़ते हैं और उन्हें अनुभव नहीं होता कि यह कुरान में अन्यलोगों की वाणियाँ हैं। इस कुरान में हजरत उमर कि फिरऔन की फरिश्तो की शैतान की मनुष्यों की व अन्य पैगम्बरों की अरब के काफिरों की वाणियाँ हैं।  मुसलमान विद्वानों ने तो इसे परख कर  स्पष्ट रूप से स्वीकार किया है किन्तु साधारण मुसलमान तो इन सबको खुदा की वाणी ही मानते हैं और नित्यपाठ करते हैं और आँख मूंदकर इसके आगे नतमस्तक होते हैं। इससे बड़ा अन्धकार और क्या हो सकता है?
विद्वानों का क्या स्वयं अल्लाह ताला को दिखाई नहीं दिया कि पूरी सूरत के बराबर जो अन्य की वाणी है कुरान में संगृहीत है वब खुदा की वाणी नहीं है।
उदाहरण:-
हजरत उमर की आयत:-
मनकाना उदुब्वुल्लिल्लाहे व मलाएकतेही व रूसुलेही वा जिब्रीला व मीकाला फइन्नल्लाहा उदुव्विंशल्लिलकाफरीन।
कुरान पारा 1. रकू 12.12।

अब काफिरों का कलमा:-
मालेलहाजर्रसूले याकेलुहत्तु आमा वा यम्शी फिल अस्वाके लौला। 
उन्जेला इलैहे कन्जुन औ तकूनो लहू जन्नतय्याकुलो मिन्हा।
कुरान पारा 18. रकू 1.16।
शैतान की वाणी:-
रब्बे बेमा अर वैतनी ल ओजय्येनन्नालहुम फिल अर्जे व ला उरवे यन्नहुम अजमईन। इल्ला एबादका मिन्हमुल्मुख्लेसीन।
:- कुरान पारा 14 रकू 3.3।
जब कुरान में ही ऐसे अनेक उदाहरण हैं , तो फिर कुरान के खुदा व मुसलमान अन्य लोगों से अरबीवमें सूरत बनाने की मांग क्यों करते हैं? क्या उन्हें अपनी कुरान नहीं दिखाई देती है? जो अन्यों की चुनौती देते हैं।

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