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🔥 *शूद्र कौन?*
         -प्रथमेश आर्य। 
🔥 *शुच् -शोकार्थक*(भ्वादि गण) धातु से *'शुचेर्दश्च'* (उणादि 2.19) सूत्र से 'रक्' प्रत्यय , उकार को दीर्घ , च को द होकर *'शूद्र'* शब्द बनता है।
शूद्र= शोचनीय : शोच्यां स्थितिमापन्नो वा , सेवायां साधुर् अविद्यादिगुणसहितो मनुष्यो वा "= *शूद्र वह व्यक्ति होता है , जो अपने अज्ञान के कारण किसी प्रकार की उन्नत स्थिति को नहीं प्राप्त नहीं कर पाया और जिसे अपनी निम्न स्थिति होने की तथा उसे उन्नत करने की सदैव चिंता बनी रहती है, अथवा स्वामी के द्वारा जिसके भरण की चिंता की जाती है ऐसा सेवक मनुष्य।*
ब्राह्मण ग्रंथो में यही भाव मिलता है।  -
"असतो वा एष सम्भूतो यत् शूद्र" (तैतरीय 3.2.3.9)   । असत्= अविद्यात्। अज्ञान और अविद्या से जिसकी निम्न जीवनस्थिति रह जाती है। वो केवल सेवा आदि कार्य ही कर सकता है वो शूद्र है।

*शूद्र विषयक कुछ शंकायें?*
1. क्या शूद्र हीन है ?
शूद्र हीन नहीं अपितु *शुचि=पवित्र* , उत्कृष्ट शुश्रूषा आदि विशेषण युक्त है। 
2. क्या शूद्र अछूत है?
नहीं, शूद्र अछूत नहीं, क्योंकि अछूत केवल शारीरिक अशुद्धि से ही होता है वो चाहे ब्राह्मण ही क्यो न हो।यह सामान्य व सार्वभौमिक बात है।
*अतः कर्म व गुण से ही व्यक्ति को शूद्र समझना चाहिये।न कि जन्म से।* वस्तुतः आज समाज में शूद्र शब्द बहुत घृणित बन गया है। अतः किसी को भी घृणित न समझें।  घृणित बुरे कर्म वाला ही होता है। श्रेष्ठ अच्छे कर्म वाला ही होता है। 
ओ3म्।

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