Skip to main content

*देवी देवताओ का यथार्थ* (भाग-2)
-  💥प्रथमेश आर्य। 
तैंतीस कोटि(प्रकार) देवता :-
*त्रया देवा एकादश त्रयास्त्रिशाः सुराधसः।*
*बृहस्पतिपुरोहिताः देवस्य सवितुः सवे देवा देवैरन्तु मा।*
           -(यजुर्वेद 20.11)
भावार्थ:- ये पृथिव्यप्तेजोवाय्वाकाशद्युचन्द्रनक्षत्राण्यष्टौ प्राणायदयो दश वायव एकादशो जीवात्मा द्वादश मासा विद्युद्यज्ञश्चैतेषां दिव्यपृथिव्यादीनां पदार्थानां गुणकर्मस्वाभावोपदेशेन सर्वान् मनुष्यानुत्कर्षयन्ति, ते सर्वोपकारका भवन्ति।
भावार्थ:- जो पृथिवी , जल, तेज, वायु, आकाश, सूर्य, चन्द्र , नक्षत्र ये *आठ* और प्राण, अपान, उदान, व्यान, समान, नाग, कृकल, कूर्म, देवदत्त, धनञ्जय तथा *ग्यारह* जीवात्मा , *बारह महीने* , बिजुली और यज्ञ *इन तैंतीस* दिव्यगुण वाले पृथिव्यादि पदार्थों के गुण , कर्म , स्वभावेन के उपदेश से सब मनुष्यों की उन्नति करते हैं , वे सर्वोपकारक होते हैं।
समस्त शास्त्रों में तेंतीस देवताओं से अभिप्राय उपर्युक्त सब व्यवहार सिद्धि के लिये हैं। सब मनुष्यों को उपासना के योग्य तो एक देव ब्रह्म ही है।उपर्युक्त समस्त लेख में प्रमाण निम्न प्रकार है:-
अथ हैनं विदग्धः शाकल्यः पप्रच्छ। कति देवा याज्ञवल्क्येति स हैतयैव निविदा प्रतिपेदे यावन्तो वैश्वदेवस्य निविद्यच्यन्ते त्रयश्च त्री च शता त्रयश्च त्री च शता त्रयश्च त्री च सहस्रेत्योमिति होवाच।1
कत्येव देवा याज्ञवल्क्येति। त्रयस्त्रिंशदित्योमिति होवाच कत्येव देवा याज्ञवल्क्येति षडित्योमिति होवाच कत्येव देवा याज्ञवल्क्येति त्रय इत्योमिति होवाच कत्येव देवा याज्ञवल्क्येति द्वावित्योमिति होवाच कत्येव देवा याज्ञवल्क्येति अर्ध्यर्थ इत्योमिति होवाच कत्येव देवा याज्ञवल्क्येत्येक इत्योमिति होवाचकतमे ते त्रयश्च त्री च शता त्रयश्च त्री च सहस्रेति।2।
स होवाच। महिमान ऐवैषामेते त्रयस्त्रिंशत्त्वेव देवा इति। कतमेते त्रयस्त्रिंशदित्यष्टौ वसव एकादश रुद्रा द्वादशादित्यास्त एकत्रिंशदिन्द्रश्चैव प्रजापतिश्च त्रयस्त्रिंशाविति।3।
कतमे वसव इति। अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्च चन्द्रमाश्च नक्षत्राणि चौते वसव एतेषु हीदंसर्वं वसु हितमेते हीदं सर्वं वासयन्ते तद्यदिदंसर्वं वासयन्ते तस्माद्वसव इति।4।
कतमे रूद्रा इति। दशेमे पुरुषे प्राणा आत्मैकादशस्ते यदास्मान्मर्त्याच्छरीरादुत्क्रामन्त्यथ रोदयन्ति तद्यद्रोदयन्ति तस्माद्रुद्रा इति।5।
कतम आदित्या इति। द्वादशमासाः संवत्सरस्यैत आदित्या एते हीदंसर्वं वसु हितमेते हीदं सर्वमाददाना यन्ति तद्यदिदंसर्वमाददाना यन्ति तस्मादादित्या इति।6। 
कतम इन्द्रः कतमः प्रजापतिरिति स्तनयित्नुरेवोन्द्रो यज्ञः प्रजापतिरिति कतम स्तनयित्नुरित्यश्निरिति कतमो यज्ञ इति पशव इति।7।
कतमे षडिति। अग्निश्च पृथिवी च वायुश्चान्तरिक्षं चादित्यश्च द्यौश्चैते षडित्येते ह्येवेदंसर्वं षडिति।8।
कतमे त्रयो देवा इति इम एव त्रयो लोका एषु हीमे सर्वे देवा इति कतमौ तौ द्वौ देवादित्यन्नं चैव प्राणश्चेति कतमोsध्यर्थ इति योsयं पवत इति।9।
तदाहुः। यदयमेक एव पवतेsथ कथमध्यर्थ इति यदस्मिन्निदंसर्वंमध्यार्ध्नोत्तेरनाध्यर्थ इति कतम एको देव इति स ब्रह्मेत्यादित्याचक्षते।10।
*भाषार्थ:-* उसके पीछे उसको चतुर शाकल्य ने पूछा- हे याज्ञवल्क्य!  देवता कितने हैं? उसने उसी बुद्धि से प्रतिपादन किया जिससे सारे विद्वान प्रतिपादन करते हैं - तीन और तीन सौ और तीन, और तीन हदार ऐसा ऐसा कहा। 1।
कितने देव हैं हे याज्ञवल्क्य!  ऐसा पूछा तेतीस हैं, ऐसा उत्तर दिया। फिर पूछा हे याज्ञवल्क्य!  कितने देव हैं? छह हैं, ऐसा उत्तर दिया। फिर पूछा हे याज्ञवल्क्य!  कितने देव हैं? तीन हैं , ऐसा उत्तर दिया।  फिर पूछा कितने देव हैं याज्ञवल्क्य!  दो हैं, ऐसा उत्तर दिया। फिर पूछा कितने देव हैं याज्ञवल्क्य!  डेढ़ हैं, ऐसा उत्तर दिया। फिर पूछा कितने देव हैं याज्ञवल्क्य!  एक है , तब ऐसा उत्तर दिया। फिर पूछा वे कौन से तीन और तीन सौ तीन और तीन हजार देव हैं?। 2।
वह बोला -ये सब इनकी महमाँये हैं, वैसे देवता तो तैंतीस ही हैं।वे कौन से तेतीस देवता हैं? आठ वसु , ग्यारह रूद्र , बारह आदित्य, ये इकतीस , इन्द्र और प्रजापति कुल तेतीस हुये।3।
कौन से वसु हैं? अग्नि, पृथिवी , पृथिवी , वायु, आकाश , आदित्य, जल ,चन्द्रमा ,नक्षत्र -ये आठ वसु हैं।इनका वसु नाम इस कारण से है कि सब पदार्थ इन्ही में बसते हैं और यही सबके निवास करने के स्थान हैं।4।
कौन से रुद्र हैं? ग्यारह रुद्र ये कहाते हैं जो शरीर में दश प्राण हैं अर्थात प्राण , अपान, व्यान , समान, उदान , नाग , कूर्म , कृकल , देवदत्त, धनञ्जय और ग्यारहवाँ जीवात्मा है, क्योंकि जब ये इस शरीर से निकल जाते हैं तब मरण होने से उसके सम्बन्धी लोग रोते हैं।वे निकलते हुये उनको रुलाते हैं , इससे इनका नाम रुद्र है।5। इसी प्रकार आदित्य 12 महीनों को कहते हैं, क्योंकि सब जगत् के पदार्थो का आदान , अर्थात् सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते हैं। इसी से इनका नाम आदित्य है।6।
ऐसे ही इन्द्र नाम बिजली का है, क्योंकि यह उत्तम ऐश्वर्य की विद्या का मुख्य हेतु है।और यज्ञ को प्रजापति इसलिये कहते हैं कि उससे वायु और वृष्टि की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है।तथा पशुओं की यज्ञ संज्ञा होने का कारण यह है कि उनमें भी प्रजा का जीवन होता है। 7।
कौन से छह देवता हैं? अग्नि, पृथिवी,  वायु, अन्तरिक्ष , आदित्य और जल ये छह देवता हैं।8।
कौन से तीन देवता हैं? कौन से दो-देवता है? अन्न और प्राण दो देवता हैं। कौन सा अध्यर्ध देव है? ।9।
वायु का नाम अध्यर्ध देव इसलिये है कि वह सबका धारण और वृद्धिकर्ता है। कौन एक देव है ? ब्रह्म एक देव है , ऐसा कहा जाता है। 10।
- *शतपथ 14/6/1-10*
ये हैं वेदमंत्रो में वर्णित तेतीस देवता और चौंतीसवाँ इन सबका स्वामी महादेव ब्रह्म,  बस दुनिया के समस्त पदार्थ इन्ही चौंतीस के अन्तर्गत आ जाते हैं।
*रह गये आपके कल्पित पौराणिक देवता , उनका न वेदों में वर्णन है और न वे इस योग्य ही हैं कि उनका किसी भली पुस्तक में वर्णन हो सके*  ।

Comments

Popular posts from this blog

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक्रिरे। एधाञ्चकृषे , एधाञ्चक्राथे , एधाञ्चकृढ्वे। एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्रवहे , एधाञ्चक्रमहे।  3. *लुट् लकार* एधिता , एधितारौ , एधितारः।  एधितासे , एधिताथे , एधिताध्वे।  एधिताहे , एधितास्वहे , एधितास्महे।  4. *लृट् लकार* एधिष्यते , एधिष्येते , एधिष्यन्ते। एधिष्यसे , एधिष्येथे , एधिष्यध्वे। एधिष्ये , एधिष्यवहे , एधिष्यमहे। 5. *लेट् लकार* एधिषातै , एधिषैते , एधिषैन्ते। एधिषासै ,  एधिषैथे , एधिषाध्वै।  एधिषै , एधिषावहै , एधिषामहै।  6. *लोट् लकार* एधताम्  ,एधेताम् , एधन्ताम्।  एधस्व , एधेथाम् , एधध्वम्। एधै , एधावहै , एधामहै। 7. *लङ् लकार* ऐधित , ऐधेताम् , ऐधन्त। ऐधथाः , ऐधेथाम् , ऐधध्वम्। ऐधे , ऐधावहि , ऐधामहि। 8. *लिङ् लकार*        *क. विधिलिङ् :-* एधेत , एधेताम् , एधेरन्। एधेथाः , एधेयाथाम् , एधेध्वम्। एधेय , एधेवहि , एधेमहि।           *ख. आशीष् :-* एधिषीष्ट , एधिषीयास्ताम

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् ,       वहि ,      महिङ्। सूत्र:- *तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्ताताम्झथासाथाम्ध्वमिडवहिमहिङ्।* अष्टाध्यायी 3.4.78

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *संज्ञा सूत्र:-* सम्यग् जानीयुर्यया सा संज्ञा।  उदाहरण: - वृद्धिरादैच् 1.1.1। 2. *परिभाषा सूत्रम्:-* परितः सर्वतो भाष्यन्ते नियमा याभिस्ताः परिभाषाः।  उदाहरण: - इको गुणवृद्धिः।  3. *विधिः सूत्र:-* यो विधीयते स विधिर्विधानं वा।  उदाहरण: - सिचि वृद्धिः परस्मैपदेषु। 4. *निषेधं सूत्रम्:-* निषिध्यन्ते निवार्यन्ते कार्याणि यैस्ते निषेधाः।  उदाहरण: - न धातुलोपे आर्द्धधातुके।  5. *नियमं सूत्रम्:-* नियम्यन्ते निश्चीयन्ते प्रयोगाः यैस्ते नियमाः।  उदाहरण: - अनुदात्तङित् आत्मनेपदम्। 6. *अतिदेशं सूत्रम्:-* अतिदिश्यन्ते तुल्यतया विधीयन्ते कार्याणि यैस्ते अतिदेशाः।  उदाहरण: - आद्यन्तवदेकस्मिन्।  7. *अधिकारं सूत्रम्:-* अधिक्रियन्ते पदार्था यैस्ते अधिकाराः। उदाहरण: - कारके।  🔥 *आर्यभाषायाम्* जिससे अच्छेप्रकार जाना जाये वह *संज्ञा* कहाती है। जैसे *वृद्धिरादैच्* । जिनसे सब प्रकार नियमों की स्थिरता की जाये वे *परिभाषा* सूत्र कहात