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🔥 *क्षत्रिय कौन ?*
          - प्रथमेश आर्य।
🔥 क्षणु- हिंसा अर्थ वाली (तनादि गण) धातु से "क्तः" प्रत्यय के योग से "क्षतः " शब्द की सिद्धि होती है।  और क्षत उपपद से "त्रैङ्= पालन करने अर्थ में" में भ्वादि धातु से 'अन्येष्वपि दृश्यन्ते' अष्टाध्यायी 3.2.101। सूत्र से 'उः' प्रत्यय , पूर्पदान्त्याकारलोप होकर "क्षत्र" शब्द बना। "क्षत्र व क्षत्रियः" स्वार्थ में ईय् होने से क्षत्रियः अथवा क्षत्रस्य-अपत्यं वा , 'क्षत्राद् घः' (अष्टाध्यायी 4.1.138) सूत्र से जन्म लेने अर्थ में 'घः' प्रत्यय होकर क्षत्रियः शब्द बना। " क्षदति रक्षति जनान् क्षत्रः" जो जनता की रक्षा का कार्य करता है। अथवा , क्षण्यते हिंस्यते नश्यते पदार्थो येन सः 'क्षतः' =घातादिः, तत-स्त्रायते रक्षतीति क्षत्रः= =आक्रमण , चोट , *हानि आदि से लोगों की रक्षा करने वाला होने से क्षत्रिय को क्षत्रिय कहते हैं।*
ब्राह्मण ग्रंथो में -क्षत्रं राजन्यः (ऐतरेय 8.2; 2.4) *क्षत्रस्य वा एतद्रूपं यद् राजन्यः।(शतपथ 13.1.5.3) =क्षत्रिय 'क्षत्र ' का ही रूप है जो प्रजा का रक्षक है।*
यहाँ अपत्य( संतान) अर्थ में 'इय् ' आदेश के योग से क्षत्रिय आदि शब्द बनाने में यह शंका होती है कि क्या वर्ण जन्म के आधार पर होगा? इसकी शंका के निवारण के लिये पुष्ट समाधान है। वंश केवल जन्म से ही नहीं अपितु विद्याजन्म से भी वंश चलता है। *अष्टाध्यायी 2.1.19 में "संख्यावंश्येन" सूत्र में विद्या से जन्म माना है।* इस प्रकार गुणग्राहिता, कार्यकारणभाव , विद्या के आधार पर भी अपत्य आदि सम्बन्ध होते हैं। जैसे सूर्य , वरुण आदि की कोई पत्नी या अपत्य आदि नहीं होते किंतु फिर भी कार्य-कारण और गुणग्राहिता आदि के आधार पर अदिति का पुत्र आदित्य , सूर्य की पत्नी सूर्या आदि यथा वारुणानी , मैत्रावरुणः आदि प्रयोग होते हैं।
*अतः क्षत्रिय केवल कर्म से ही होता है। जन्म मात्र से कदापि नहीं।*
ओ3म्।

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