एक बार अब्दुरहमान बिन ओफ ने दावत में मुहम्मद व उनके मित्रों को दावत में बुलाया और मदिरापान करवाया।
तब सायंकालीन नमाज का समय हुआ तो उन्होने नमाज पढ़ने हेतु खड़ा कर दिया किन्तु उसने सूरत काफिरू गलत पढ़ी। फलस्वरूप खुदा ने निम्न आयत उतारी कही गयी:-
या अय्यु हल्लजीना आमनू ला तकरबुस्सलाता व अन्तुम सुकारा।
:- कुरान पारा 5 रकू 7.4।
अर्थात्:- नमाज के अवसरों पर शराब न पियो।
नशा इतना हो कि वह समझ सके कि वह मुँह से क्या बोल रहा है तब उस नशे में भी नमाज पढ़ सकते हो।
तफसीर मजहरी पारा 5. पृष्ठ 87।
अब एक चर्चा चली यह चली कि शैतानी कार्य्य (मदिरापान) जिन व्यक्तियों ने किया है जीवित या मृत हैं ? उनका क्या होगा?
तो तत्काल उच्च न्यायालय (खुदा) से निर्णय होकर आ गया कि :-
अर्थात्:- उन लोगों पर कोई गुनाह नहीं जिन्होने शराब पी ली है , जिन्होने अच्छे काम किये हैं और ईमान लाये हैं तथा इसके मध्य उन्होने बह हराम वस्तु खा पी ले और वह उन पर हराम न थी। जीवितों पर भी कोई अपराध न हीं है, जिन्होने हराम होने के पूर्व मदिरापान किया ...... इत्यादि।
तफसीर इब्ने कसीर , पारा .7 पृष्ठ 12।
अब हम भी इस शराब की चर्चा को बन्द करते हैं , क्योंकि जब उच्च न्यायालय से ही निर्णय हो गया तो फिर इस विषय पर चर्चा का अधिकार नहीं रह जाता।
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