Skip to main content

*इन्द्र शब्द का अर्थ:-*
लौकिक साहित्य में इन्द्र का अर्थ राजा है। पौराणिक साहित्य में इन्द्र एक कल्पित स्वर्ग का राजा है और अपनी देव कथाओं का विलासी पात्र है। *परन्तु वैदिक साहित्य में इन्द्र का अर्थ आत्मा है।* आत्मा शब्द से जीवात्मा व परमात्मा दोनों का ग्रहण होता है।
यह अन्तरात्मा इन्द्र है। इसके लिये सर्व प्रसिद्ध प्रमाण देह की इन्द्रियाँ हैं जिनका नाम ही इन्द्र के आधार पर है। पाणिनी आचार्य ने इन्द्रिय शब्द की व्युत्पत्ति लिखी है - *इन्द्रियमिन्द्रलिङ्गमिन्द्रदृष्टमिन्द्रसृष्टमिन्द्रजुष्टमिन्द्रदत्तमिति वा*। (पा. 5.2.93)
इन्द्र आत्मा का ज्ञापक लिङ्ग, उसका देखा , उससे उत्पन्न , उससे सेवित और उसकी शक्ति से युक्त होने के कारण ही इन्द्रिय कहाते हैं। इसके अतिरिक्ति सब कथा कथानको में प्रसिद्ध पुराणगत इन्द्र कोई पदार्थ नहीं है। वह भी अलंकारिक रूप से इसी इन्द्र आत्मा के सम्पन्न, सिद्ध, ऐश्वर्यवान् आदि रूपों को दर्शाया है। दूसरा इन्द्र वह परमात्मा है जिसका वर्णन वेद में स्थान स्थान पर आता है। जैसे :- *इन्द्रो मह्ना रोदसी पप्रथच्छवा* साम. उत्त. अ 16.28.2।
इस विषय में उपनिषद् का क्या मत है ?:-
ऐतरेय उपनिषद्: -
*स एतमेव पुरुषं ब्रह्मं ततमपश्यद् इदमदर्शमितीँ् तस्मादिदन्द्रो नाम। इदन्द्रो ह वै नाम तमिदन्द्रं सन्तदिन्द्र इत्याचक्षते परोक्षेण। परोक्षप्रिया हि देवाः।*
वह मुमुक्षु इस पुरुष को ही ब्रह्मरूप से देखता हैन और कहता है *इदम् अदर्शनम्* इससे उस ब्रह्म का नाम *इदन्द्र* है इसका ही परोक्षरूप *इन्द्र* है।
बृरहदारण्यक में:-
*इन्धो ह वै नाम एष योsयं दक्षिणेsक्षन् पुरुषः।तं वा एतमिन्ध सन्तमिन्द्र इत्याचक्षते* 4.2.2।
दक्षिण चक्षु में दृष्टा रूप से विद्यमान आत्मा ही *इन्ध* है उसको ही *इन्द्र* कहते हैं।

Comments

Popular posts from this blog

एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक्रिरे। एधाञ्चकृषे , एधाञ्चक्राथे , एधाञ्चकृढ्वे। एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्रवहे , एधाञ्चक्रमहे।  3. *लुट् लकार* एधिता , एधितारौ , एधितारः।  एधितासे , एधिताथे , एधिताध्वे।  एधिताहे , एधितास्वहे , एधितास्महे।  4. *लृट् लकार* एधिष्यते , एधिष्येते , एधिष्यन्ते। एधिष्यसे , एधिष्येथे , एधिष्यध्वे। एधिष्ये , एधिष्यवहे , एधिष्यमहे। 5. *लेट् लकार* एधिषातै , एधिषैते , एधिषैन्ते। एधिषासै ,  एधिषैथे , एधिषाध्वै।  एधिषै , एधिषावहै , एधिषामहै।  6. *लोट् लकार* एधताम्  ,एधेताम् , एधन्ताम्।  एधस्व , एधेथाम् , एधध्वम्। एधै , एधावहै , एधामहै। 7. *लङ् लकार* ऐधित , ऐधेताम् , ऐधन्त। ऐधथाः , ऐधेथाम् , ऐधध्वम्। ऐधे , ऐधावहि , ऐधामहि। 8. *लिङ् लकार*        *क. विधिलिङ् :-* एधेत , एधेताम् , एधेरन्। एधेथाः , एधेयाथाम् , एधेध्वम्। एधेय , एधेवहि , एधेमहि।           *ख. आशीष् :-* एधिषीष्ट , एधिषीयास्ताम

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् ,       वहि ,      महिङ्। सूत्र:- *तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्ताताम्झथासाथाम्ध्वमिडवहिमहिङ्।* अष्टाध्यायी 3.4.78

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *संज्ञा सूत्र:-* सम्यग् जानीयुर्यया सा संज्ञा।  उदाहरण: - वृद्धिरादैच् 1.1.1। 2. *परिभाषा सूत्रम्:-* परितः सर्वतो भाष्यन्ते नियमा याभिस्ताः परिभाषाः।  उदाहरण: - इको गुणवृद्धिः।  3. *विधिः सूत्र:-* यो विधीयते स विधिर्विधानं वा।  उदाहरण: - सिचि वृद्धिः परस्मैपदेषु। 4. *निषेधं सूत्रम्:-* निषिध्यन्ते निवार्यन्ते कार्याणि यैस्ते निषेधाः।  उदाहरण: - न धातुलोपे आर्द्धधातुके।  5. *नियमं सूत्रम्:-* नियम्यन्ते निश्चीयन्ते प्रयोगाः यैस्ते नियमाः।  उदाहरण: - अनुदात्तङित् आत्मनेपदम्। 6. *अतिदेशं सूत्रम्:-* अतिदिश्यन्ते तुल्यतया विधीयन्ते कार्याणि यैस्ते अतिदेशाः।  उदाहरण: - आद्यन्तवदेकस्मिन्।  7. *अधिकारं सूत्रम्:-* अधिक्रियन्ते पदार्था यैस्ते अधिकाराः। उदाहरण: - कारके।  🔥 *आर्यभाषायाम्* जिससे अच्छेप्रकार जाना जाये वह *संज्ञा* कहाती है। जैसे *वृद्धिरादैच्* । जिनसे सब प्रकार नियमों की स्थिरता की जाये वे *परिभाषा* सूत्र कहात