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*देवी और देवताओं का यथार्थ*     (भाग-1)
      -प्रथमेश आर्य। 
   नमस्ते मित्रों!
*दिवु- क्रीडा-विजिगीषा-व्यवहार-द्युति-मोद-मद-स्वप्न-कान्ति-गतिषु* (दिवादि गण) धातु से *"पचाद्यच्"* से *"अच्"* प्रत्यय अथवा *दिवु-मर्दने* (चुरादिगण) या *दिवु-परिकूजने* (चुरादिगण) धातु से *"अच्"* प्रत्यय के भाग से *"देव"* शब्द सिद्ध होता है।
🔥    *दिव्+अच्= देव्+अ =देव +सु= देवः।*
*निरुक्त* में 'देव' शब्द की निरुक्ति इस प्रकार दी है :-
*देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा, द्योतनाद्वा द्युस्थानो भवतीति वा।* (7.4.15) अर्थात् *दान देने वाले, प्रकाशित करने वाले , प्रकाशित होने वाले या द्युस्थानीय को देवता कहते हैं।*
देवता दो प्रकार के होते हैं जड़ और चेतन। 
जड़ देव उपयोग के योग्य होते हैं।चेतन देव (विद्वान, माता, पिता, आदि ) आदि सत्कार और सेवा के द्वारा प्रसन्न करने योग्य होते हैं। परंतु उपासना के योग्य केवल एक परमात्मा ही है।यदि कहीं अग्नि, इन्द्र , वरुण आदि नामों से देवताओ की स्तुति का वर्णन मिलता है तो वहाँ भी उनके माध्यम से परमात्मा की स्तुति ही अभिप्रेत है।
इसमें वेद का प्रमाण है :-
तदेवाग्निस्तदादित्यस्तद् वायुस्तदु चन्द्रमा।
तदेव शुक्रं तद्ब्रह्मं ता आपः स प्रजापतिः।
       - (यजुर्वेद 32.1)
वह परमात्मा ही अग्नि, आदित्य, शुक्र आदि है।
सूर्य द्युस्थानीय है और अपने प्रकाश से यब मूर्तिमान् द्रव्यों को प्रकाशित करता है अतः देव या देवता है। 
इसके अतिरिक्त दिव्यगुण व दिव्य कर्म वाले को व्यक्ति  भी देवता कहाते हैं।
*देव+तल्= देवत+टाप्= देवता।*
🔥 विद्वांसो ही देवः। शतपथ 3.7.6.10)
अर्थात् विद्वान् मनुष्यों को देव कहते हैं।
इसी प्रकार विद्याओं से प्रकाशित और विद्याओ का दान देने वाले , दिव्य गुण एवं उत्तम आचरण वाले विद्वानों को देव कहा जाता है।
यथा:- मातृ देवो भव, पितृ देवो भव , आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव, (प्रपाठक 7.11)
शतपथ में आता है कि
*"द्वयं वाsइदं न तृतीयमस्ति सत्यं चैवानृतं च।सत्यमेव देवा अनृतं मनुष्याः 'इदमहमनृतात् सत्यमुपैमीति' तन्मनुष्येभ्य देवानुपैति।*
"🔥 दो लक्षणों से मनुष्य की दो संज्ञायें होती हैं। अर्थात् देव और मनुष्य। वहाँ सत्य और झूठ दो कारण हैं।जो सत्य बोलने , सत्य मानने और सत्य कर्म करने वाले हौं वे *"देव"* और वैसे ही झूठ मानने और कर्म करने वाले *"मनुष्य"* कहाते हैं।जो झूठ से अलग होकर सत्य को प्राप्त होवें वो देवजाति में गिने जाते हैं।

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एध धातु आत्मनेपदी

🔥 एधँ वृद्धौ , भ्वादि गण, उदात्त, अनुदात्त(आत्मनेपदी) 1. *लट् लकार* एधते, एधेते , एधन्ते।  एधसे, एधेथे , एधध्वे। एधे, एधावहे , एधामहे। 2. *लिट् लकार* एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्राते , एधाञ्चक्रिरे। एधाञ्चकृषे , एधाञ्चक्राथे , एधाञ्चकृढ्वे। एधाञ्चक्रे , एधाञ्चक्रवहे , एधाञ्चक्रमहे।  3. *लुट् लकार* एधिता , एधितारौ , एधितारः।  एधितासे , एधिताथे , एधिताध्वे।  एधिताहे , एधितास्वहे , एधितास्महे।  4. *लृट् लकार* एधिष्यते , एधिष्येते , एधिष्यन्ते। एधिष्यसे , एधिष्येथे , एधिष्यध्वे। एधिष्ये , एधिष्यवहे , एधिष्यमहे। 5. *लेट् लकार* एधिषातै , एधिषैते , एधिषैन्ते। एधिषासै ,  एधिषैथे , एधिषाध्वै।  एधिषै , एधिषावहै , एधिषामहै।  6. *लोट् लकार* एधताम्  ,एधेताम् , एधन्ताम्।  एधस्व , एधेथाम् , एधध्वम्। एधै , एधावहै , एधामहै। 7. *लङ् लकार* ऐधित , ऐधेताम् , ऐधन्त। ऐधथाः , ऐधेथाम् , ऐधध्वम्। ऐधे , ऐधावहि , ऐधामहि। 8. *लिङ् लकार*        *क. विधिलिङ् :-* एधेत , एधेताम् , एधेरन्। एधेथाः , एधेयाथाम् , एधेध्वम्। एधेय , एधेवहि , एधेमहि।           *ख. आशीष् :-* एधिषीष्ट , एधिषीयास्ताम

तिङ् प्रत्यय

🔥  *तिङ् प्रत्ययाः*      *परस्मैपद:-*   1. तिप् ,   तस् ,   झि।    2. सिप् ,   थस् ,   थ।   3.  मिप् ,   वस् , मस्।         *आत्मनेपद:-* 1.   त ,      आताम् ,        झ।  2.   थास् ,   आथाम् ,    ध्वम्। 3.   इट् ,       वहि ,      महिङ्। सूत्र:- *तिप्तस्झिसिप्थस्थमिब्वस्मस्ताताम्झथासाथाम्ध्वमिडवहिमहिङ्।* अष्टाध्यायी 3.4.78

अष्टाध्यायी सूत्र प्रकार

🔥 *अष्टाध्याय्याः सूत्राणां विभागाः* अष्टाध्यायी में सभी सूत्र सात प्रकार के हैं:- संज्ञापरिभाषाविधिनिषेधनियमातिदेशाधिकाराख्यानि सप्तविधानि सूत्राणि भवन्ति। 1. *संज्ञा सूत्र:-* सम्यग् जानीयुर्यया सा संज्ञा।  उदाहरण: - वृद्धिरादैच् 1.1.1। 2. *परिभाषा सूत्रम्:-* परितः सर्वतो भाष्यन्ते नियमा याभिस्ताः परिभाषाः।  उदाहरण: - इको गुणवृद्धिः।  3. *विधिः सूत्र:-* यो विधीयते स विधिर्विधानं वा।  उदाहरण: - सिचि वृद्धिः परस्मैपदेषु। 4. *निषेधं सूत्रम्:-* निषिध्यन्ते निवार्यन्ते कार्याणि यैस्ते निषेधाः।  उदाहरण: - न धातुलोपे आर्द्धधातुके।  5. *नियमं सूत्रम्:-* नियम्यन्ते निश्चीयन्ते प्रयोगाः यैस्ते नियमाः।  उदाहरण: - अनुदात्तङित् आत्मनेपदम्। 6. *अतिदेशं सूत्रम्:-* अतिदिश्यन्ते तुल्यतया विधीयन्ते कार्याणि यैस्ते अतिदेशाः।  उदाहरण: - आद्यन्तवदेकस्मिन्।  7. *अधिकारं सूत्रम्:-* अधिक्रियन्ते पदार्था यैस्ते अधिकाराः। उदाहरण: - कारके।  🔥 *आर्यभाषायाम्* जिससे अच्छेप्रकार जाना जाये वह *संज्ञा* कहाती है। जैसे *वृद्धिरादैच्* । जिनसे सब प्रकार नियमों की स्थिरता की जाये वे *परिभाषा* सूत्र कहात